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जयवंतसूरिकृत बार भावना सज्झाय
. - संपा. जयंत कोठारी
कविपरिचय जयवंतसूरि (अपरनाम गुणसौभाग्यसूरि)ए वडतपगच्छनी स्नाकर शाखाना उपाध्याय विनयमंडनना शिष्य हता. एमनी बे रासकृतिओ 'शृंगारमंजरी' अने 'ऋषिदत्ता रास' अनुक्रमे १५५८(वि.सं.१६१४) अने १५८७(वि.सं. १६४३)नां रचनावर्षो बतावे छे अने १५९६(वि.सं.१६५२)मा एमणे 'काव्यप्रकाश नी टीकानी हस्तप्रत लखावीने ज्ञानभंडारमा मुकाव्यानी माहिती मळे छे एटले कविनो समय सोळमी सदीनो गणाय - सोळमी सदीना बीजा चरणथी कदाच सत्तरमी सदीनां थोडां वर्षों सुधीनो. ___ जयवंतसूरिने नामे बे रासकृतिओ उपरांत स्तवन, लेख(पत्र), संवाद, फाग, बारमासा वगेरे प्रकारनी कृतिओ अने ८० जेटलां गीतो मळे छे. अनेकविध भावछटाओ अने अभिव्यक्तितराहोथी ओपती एमनी काव्यसृष्टि एमनी विदग्धता अने एमना उच्च कवित्वनी प्रतीति करावे छे. (विशेष माटे जुओ मध्यकालीन गुजराती जैन साहित्य, संया. जयंत कोठारी, कांतिभाई बी. शाह, १९९३ तथा कविलोकमां, जयंत कोठारी, १९९४ - 'पंडित, रसज्ञ अने सर्जक कवि जयवंतसूरि' ए लेख.)
कृतिपरिचय 'बार भावना सज्झाय' ढाळ अने त्रोटकना पद्यबंधमां रचायेली ३९ कडीनी रचना छे. ३९ कडी कहेवाथी समजाय एना करतां एनुं परिमाण मोटुं छे केमके पंदरेक कडीओ ढाळ अने त्रोटकना विभागो धरावे छे अने ६थी ८ पंक्ति सुधी विस्तरे छे. बेएक अन्य कडीओ पण चार पंक्ति सुधी विस्तरे छे. ढाळ अने त्रोटकना विभागो वच्चे शब्दसांकळी छे. कृतिनो विशिष्ट पद्यबंध अने त्रोटकना प्रयोगथी आवती गानछटा ध्यानार्ह छे.
आ कृति जयवंतसूरिनी एकमात्र एवी कृति छे जे संपूर्णपणे सांप्रदायिक
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