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________________ अनुसंधान-१७. 147 निरया गति अति जीवडु, वेइ दुख असाय, संकड कुंभी ऊपनु, तलि शिर ऊपरि पायो रे. १६ पीडइ पाप पचारतां, परमाधामी अपार, सांडसइ त्रोडइ, तेलि तलइ, दिइ वली मोगर-प्रहारो रे. १७ भा० पारानी परि वली मिलिइ, कीध स खंडोखंडि, सुख एक मेषोन्मेष नहीं, नवि मेहलइ टलवलतां रे. १८ भा० झडपइ आमिष पिंडनई, समलीरूप करेवि, चांच जिसी हुइ भालडी, तन वींधइ ततखेवो रे. वज्रमुखरूपी कंथूआ, वेदन करइ शरीर, माहोमांहिं आयुधि हणइ, मुखि मुंकइ अति रीरो रे. माहा माझिम निसि जल वडइ, छांटी वीजइ रे वाय, अनंत गुणी शीत-वेदना, तेहथी नरकि सहायो रे. तावडि तापिउ टलवलइ, वंछि वनतरु वाय, सामलि असिवनि राखीउ, ते दुख मिइं न कहायो रे. २२ भा० करवतधारा पानडां, पडि पडि खंडइ देह, समलीरूपई ठणक दिइ, ते दुखनु नहीं छेहो रे. २३ भा० भार भरी ऊतारीइ, वइतरणीनइ मांहि, मत्स्य भखइ वली देह गलइ, पगि गोखरू वींधायो रे. २४ भा० अगनिवर्ण करी पूतली, दिइ आलिंगन देहि, तातां तरूआं पाईइ, कही न सकुं दुख एहो रे. २५ भा० दसविध वेदनदुख सह्यां, जे मिई नरक मझारि, कोडि जीभ कहइ केवली, तुहि न आवइ पारो रे. इम तिरीआं गति मानवी, देठ तणी गति माहिं, परि परि जे दुख मि सह्यां, ते वली कह्यां न जायो रे. २७ इम भवभावन भावतां, जे विरमइ संसारि, ते पुष्पचूलानी परइं, पामइ पामइ भव तणउ पारो रे. २८ भा० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229691
Book TitleBar Bhavna Sazzaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanti Kothari
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size363 KB
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