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अनुसंधान - १७•150
नारीनइ बूडा नही, तारू हूआ तारुन्नि,
इंद्रिय-हय जीपी करी, आणी निजवसि मन्त्र. जंबूकुमर तणी परि छंडी सोविन नारि, आप सवारथ साधीअ, जे रह्या सिद्धिदूआरि उत्तम भावन भावतां, प्राणी तर संसारि, जनम-जरा- भवभय थकी, पामइ ते नर पार
ए ढाल
गिरिवर मांहिं मेरु वडु रे बोधिभावन हवि भावीइ रे, दुर्लभ ते जगि होइ, चक्रवतिपदवी सोहिली रे, सोहिलां सुरसुख होइ.
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३४
नूटक
सोहिलां सुरसुख होइ, प्राणी, लक्ष वार स पामीर, एक धर्म दोहिलु वली भवि संसारमांहिं अनंत पुद्गलपरावत्ति भवि भमइ,
मिथ्यात्व मोहिउ, पाप वाहिउ, धर्म-अक्षर नवि गमइ ३६ [ ढाल]
जिम नइ पाहाण तणी परिई रे, यथाप्रवृतिकरणेण, कोडाकोडि एक थाकतां रे, आठइ करम तणेण.
३५
भवि दुःख जेहथी वामी,
नूटक आठइ कर्म तणी गति, कोडाकोडि एकेकी जव रहइ, ए चौद अंतरग्रंथि भेदक समय जिनवर तव कहइ, जे रागदोषप्रणाम[ प्रमाण ] सरूपी ग्रंथि ते अणभेदतइ,
नवि लहइ प्राणी शुद्ध समकित ग्रंथि दृढ पोतइ छतइ ३७ [ ढाल]
पर्वतनी परि भेदवा रे, को लघुकरमी होइ, भेदइ अपूरवकरणडइ रे, अनिवृतिकरण स जोड़.
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