________________
अनुसंधान - १७• 149
आश्रव - परवसिपणइ दुःख, मृगापुत्र संभालु. एक मोकलडइ छिद्रि जिम, प्रवहण बूडइ तोइ,
तिम आश्रवथी प्राणीउ, भवसायरि बूडेइ. ढाल वेलिनी
नुमी भावन भावतां, आश्रव तिजउ सदैव, मन वचने काया करी, संवर करि रे जीव.
नूटक संवर कर रे जीव संसारि, विषयादिक वली वारि, क्रोध क्षमाई मान जि विनयई, माया सरलाई वारि, लोभ संतोषई टाली, चारित्र पाली जिनवर आण, संवर आणी प्रसन्नचंद्रादिक पुहुता मुगति निदानि.
ढाल
दशमीय दशमीय भावन भावीइ ए
निरजरा निरजरा तपह प्रमाणि कि,
बाह्य अभ्यंतर बि परई ए.
अणसण ऊणोदरीअ वखाणि कि. लूटक
अणसण ऊणोदरी जाणी, वृत्तिसंखेप संलीनता, रसत्याग कायाक्लेश बाहिरि - भेद छ ए गुणवता, प्रायश्चित्त कासग ध्यान विनई, वैयावृत्य सझाय- स्युं, ए भेद आभ्यंतरिक, निर्जर भावि भावन भाव- - स्युं. गुरु गिरुआ गुणसागर ए ढाल
उत्तम भावन भावतां, उत्तम गुण संभारि, चारित्र निरमल आदरी, पुहुता मुगति मझारि
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
३३
३१
३२
www.jainelibrary.org