Book Title: Bar Bhavna Sazzaya Author(s): Jayanti Kothari Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 7
________________ अनुसंधान - १७ • 148 ढाल अस्थिर काया हो प्राणी ए खरी, वह नव द्वारई हो मलमूत्रई भरी. नूटक मलमूत्रि भारी, अतिअ सारी, रुधिर वीर्य थकी घडी, आहार - जल मल-मूत्र थाइ, शुचि न थाइ देहडी, वाधी अमा मुख अशुचि अन्नई, नुहि किमहिझं निर्मली, ए अशुचि साते धाति बांधी, ऊपरि चरमह कोथली. आभरण सोहइ सहु मोहइ, अशुचिभावन भावतां, श्रीभरत भूपति लहिउं केवल, आरीसइ मुख जोयतां. सिरि संति जिणेसर ए ढाल हवि सातमि भावन, लोकसरूप अपार, एक पुण्यसंयोगई, सुख वेइ सुरलोकि, सुर नर पातालई, त्रिभुवन तणउ रे विचार एक थाइ माता वली वनिता, तात सुत वली सुत पिता, कुबेरदत्त कुबेरदत्ता, कुबेरसेना अति मता, ए लोकभावन जीवभावन, जेह ध्याइ एकमनां, वैराग्यरंगई चित्त चंगई, नुहि भवभय आसना. जय जगगुरुनी ढाल अट्ठमि भावन भावतां, मनि आश्रव रूंधु, Jain Education International एक मानवनी गति, नरकि सहइ दुख एक. नूटक वइरी विषयादिक सबल, ते चित्ति म बंधु. राग रोस परिहरु दूरि, हिंसादिक टालु, २९ For Private & Personal Use Only ३० www.jainelibrary.orgPage Navigation
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