Book Title: Bambai Chintamani Parshwanathadi Stavan Pad Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Chintamani Parshwanath Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ . जैन धर्म में ज्ञान, दर्शन और चारित्र को मोक्ष का मार्ग बतलाया है। जैनेतर दर्शनों में उनकी संज्ञा, भक्ति, ज्ञान और योग या कर्म मार्ग है। वैष्णव धर्म में भक्ति को प्रधानता दी गई है, वेदान्त में ज्ञान को और मीमांसक आदि में क्रिया काण्ड को तथा योग दर्शन एवं गीता में जो कर्म एवं योग मार्ग की प्रधानता हैं इन सब का समन्वय जैन मनीषियों ने 'ज्ञान, दर्शन और चरित्र' इस त्रिपुटी रुप मोक्ष मार्ग में कर लिया है। गुणी जनों के प्रति आदर भाव, मानव में गुणों के विकास करने का सरल मार्ग है। किसी आप्त पुरुष के प्रति श्रद्धा होने पर उनके बतलाए तत्व ज्ञान व धर्म मार्ग के प्रति श्रद्धा होती है और उन विशिष्ट ज्ञानियों के प्रति श्रद्धा व आदर का भाव ही भक्ति की मूल चेतना है। भक्ति की अन्तिम परिणति भक्त का भगवान् के साथ अभेद या तादात्म्य संबंध स्थापित होना है। गुणी पुरुष का गुणगान करके मनुष्य उन गुणों के प्रति आकर्षित होता है और अपने में उन गुणों का विकास करने की भावना व प्रयत्न, उसे आगे बढ़ा कर परमात्म स्वरूप बना देता है। इसीलिए सभी धर्मों में अपने उपकारी व गुणी महापुरुषों, भगवान व परमात्मा के गुणगान की प्रवृत्ति नजर आती है। जैन धर्म में भी तीर्थकरों और गुरुओं के स्तुति व गुणानुवाद रुप भक्ति पदों का प्राचुर्य मिलता "है। आत्मोन्नति के लिए समय २ पर आत्मा को प्रबोध देने वालो वैराग्य और आध्यात्मिक भावनाओं का विकास आवश्यक होने से प्रेरणा 'दायक वैराग्योत्पादक और आध्यात्मिक पद भी जैन कवियों ने प्रभूत मात्रा में रचे हैं। वैसे ही भक्ति और प्रबोधक पदों का यह संग्रह ग्रंथ "पाठकों के समक्ष उपस्थित है। खरतर गच्छीय वाचक अमरसिंधुर के समय-समय पर निकले हुए भावोद्गार प्रस्तुत संग्रह में संकलित किये गये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 178