Book Title: Balbodh Pathmala 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 18
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ज्ञानचंद - जीव सुख व दुःख का अनुभव करता हैं, अजीव में सुख दुःख नही होता। हम तुम का सुख-दुःख अनुभव करते हैं. अतः जीव हैं। टेबल, कुर्सी सुख दुःख का अनुभव नहीं करते, अतः अजीव है। ये (टेबल और शरीर ) जीव है । - हीरालाल – आँखें देखती हैं, कान सुनते हैं, शरीर में सुख - दुःख होता हैं, तो अपना शरीर तो जीव है न ? ज्ञानचंद – नहीं, भाई ! आँख थोड़े ही देखता है, कान थोड़े ही सुनते हैं, देखने-सुनने वाला इनसे अलग कोई जीव (आत्मा) है। यदि आँख देखे और कान सुने तो मुर्दे (मरा शरीर ) को भी देखनासुनना चाहिए। इसलिए तो कहा है कि शरीर अजीव है और आँख, कान आदि शरीर के ही हिस्से हैं, अतः वे भी अजीव हैं । हीरालाल — • अच्छा भाई ज्ञानचंद, अब मैं समझ गया कि : मैं जीव हूँ। शरीर जीव है। मुझ में ज्ञान है, शरीर में ज्ञान नहीं है । मैं जीव हूँ। १५ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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