Book Title: Balavbodh Mokshmala
Author(s): Mansukhlal Ravjibhai Mehta
Publisher: Mansukhlal Ravjibhai Mehta

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Page 7
________________ आजनी अने ४५ वर्ष उपरनी हिंदनी स्थितिमा आकाश पाताळ जेटलो भेद पडी गयो छे. पीस्ताळीश वर्ष उपर धार्मिक, सामाजीक, अने राजप्रकरणी स्थिति जे दशा भोगवती हती, अने आजे भोगवे छे तेमां सामान्यमा सामान्य अवलोकनकारने न कल्पी शकाय एवो भेद दृष्टिगोचर थाय छे. हिंदनी सर्व सामान्य स्थिति आजथी ४५ वर्ष उपर आ रीते, जे दशा भोगवती हती तेना परिणाममां जैन मार्गनी स्थितिनो विचार, जो बराबर करवामां आवे, तो जणाय के, ते समये जैन मार्गनी स्थितिनी दशा घणीज मंद हती. जे समये आवी स्थिति वर्तती हती ते समये अत्यारे जाहेर रीते स्वीकाराएलां असाधारण शक्तिना आ पुरुष- जन्मवू जैन मार्गमां थयुं हतुं. महान् अंग्रेज लेखक मी० बर्क कहे छ के, दुनिया ५० वर्ष पाछळ छे. आ लेखकनो कहेवानो अभिप्राय एवा प्रकारनो छे के, दुनियाए आजे जे वात वस्तुतः समजवी जोइए, ते पचाश वर्ष पछी समजती थाय छे. श्रीमान् राजचंद्र ज्यारे समाज सन्मुख आव्या त्यारे जैन समाजनी स्थिति अनेक प्रकारना मतमतांतरोमां मशगुल हती. लोकोने एबुं मनाववामां आव्युं हतुं के पोते जे कुळमां जन्म्या होइए ते कुळना संप्रदायना धर्म विचारो गमे तेवा होय परंतु तेने वळगी रहेवामांज कल्याण छे. आ ईलाकानी तरफमां जैनना बे मुख्य गच्छोमां अनक अल्प अल्प बाबतोमा विखवाद चाल्या करतो हतो. संवत् १९४३ नी साल के जे सालनी लगभगना वर्षों "समकित सार" अने “समकित शल्योद्धार" रुपी क्लेशोनां स्थान हतां, त्यारे मात्र अढार वर्षनी पये श्रीमान् राजचंद्र जैन मार्गनी दशानुं नीचे प्रमाणे अवलोकन करी शक्या हताः-- "जैन समुदायमां परस्पर मतभेद बहु पडी गया छे. परस्पर निंदा ग्रंथोथी जंजाळ मांडी बेठा छे, महावीर भगवानना भणीथी उपासक वर्गनुं लक्ष गयुं; मात्र क्रियाभावपर राचता रह्या जेतुं परिणाम

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