Book Title: Balavbodh Mokshmala
Author(s): Mansukhlal Ravjibhai Mehta
Publisher: Mansukhlal Ravjibhai Mehta

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Page 12
________________ - तेोश्रीना विचारोने माटे अभिप्राय आपवानी क्या जरुर छे ? जे पुरुषे आत्मानुभवथी विचारो बताव्या छे ते पुरुषना विचारोना संबंधमा बाह्यदृष्टि शो अभिप्राय आपे? एना संबंधमां विशेष नही कहेता श्रीयुत मोहनदास गांधीना शब्दोमांज ते विचारोथी केटली शांति मळे छे ते जणाव, बस थइ पडशे; " तेओनां आ पुस्तको में वांच्या छे, अने तेणे मने सवोत्कृष्ट शांति आपी छे." ___ आ बृहत् ग्रंथमांना विचारो एक जैन महानुभावना होवा छतां ते कोई पण दर्शनना अनुयाया वांचतां विचारतां एमज अनुभवी शकशे के, ते विचारो कोई पण संप्रदायना ममत्वने माटे नथी परंतु आत्मत्वप्राप्ति माटेना छे. तेथी आत्मकल्याणज थई शकवानु. ज्ञानीनी दृष्टि सदैव एकज वस्तुनी प्रानि माटे होय छ; अने ते वस्तु ते आत्मस्वरुप छे. श्रीमान् राजचंद्रनो आभ्यन्तर लक्ष-परम मनोरथ-शुंहतो ते सुज्ञ वाचक तेओना नीचे आपेल काव्यपरथी जोई शकशे. गुणस्थानक क्रमारोह. १. अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे ? . क्यारे थईशुं बाह्यांतर निथ जो? सर्व संबंधनुं बंधन तिक्ष्ण छेदीने, __विचरशुं कव महत्पुरुषने पंथजो? अपूर्व० सर्व भावथी औदासीन्यवृत्ति करीः ____ मात्र देह ते संयमहेतु, होय जो; अन्य कारणे अन्य कशुं कल्पे नही, देहे पण किंचित् मूर्छा नव जोय जो. अपूर्व० ३. दर्शनमोह व्यतीत थई उपज्यो बोध जे, देह भिन्न केवल चैतन्यनुं ज्ञान जो; तेथी प्रक्षीण चारितमोह विलोकिये, वर्ते एवं शुद्धस्वरुपर्नु ध्यान जो. हो । अपवे.

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