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जीवित, के मरणे नहीं न्यूनाधिकता, __भव मोक्षे पण शुद्ध वर्ते समभाव जो. अपूर्व० एकाकी विचरतो वळी स्मशानमां, ___ वळी पर्वतमा वाघ सिंह संयोग जो; अडोल आसन, ने मनमा नहीं क्षोभता,
परममित्रनो जाणे पाम्या योग जो. १२. घोर तपश्चर्यामां पण मनने ताप नहीं,
सरस अन्ने नहीं मनने प्रसन्नभाव जो; • रजकण के रिद्धि वैमानिक देवनी,
___सर्वे मान्या पुद्गल एक स्वभाव जो. अपूर्व० १३. एम पराजय करीने चारितमोहनो,
__ आवं. त्यां ज्यां करण अपूर्व भाव जो; श्रेणी क्षपकतणी करीने आरूढता,
__अनन्य चिंतन अतिशय शुद्ध स्वभाव जो. अपूर्व० १४. मोह स्वयंभूरमण समुद्र तरी करी,
स्थिति त्यां ज्यां क्षीणमोह गुणस्थान जो; अंत समय त्यां पूर्ण स्वरुप वितराग थई, ..
प्रगटा निज केवलज्ञाननिधान जो. अपूर्व० - १५. चार कर्म घनघाती ते व्यवच्छेद ज्यां,
भवना बोजतणो आत्यंतिक नाश जो; सर्वभाव ज्ञाता दृष्टा सह शुद्धता, ..
__ कृतकृत्य प्रभु वीर्य अनंत प्रकाश जो. अपूर्व० १६. वेदमियादि चार कर्म वर्ते जहां,
बळी सौंदरीवत् आकृति मात्र जो; ते देहायुष आधीन जेनी स्थिति छ,
आयुष पूर्णे, मटिये दैहिकपात्र जो. अपूर्व०