Book Title: Balavbodh Mokshmala Author(s): Mansukhlal Ravjibhai Mehta Publisher: Mansukhlal Ravjibhai Mehta View full book textPage 9
________________ केम जाण तेओ एकबीजाना प्रतिपक्षीओ होय. श्रीमान् राजचंद्रे आबे शाखाओना संबंधमां आ प्रमाणे अभिप्र य धारण कर्यो हतो. ___ "शरीरादि बळ घटवाथी सर्व मनुष्योथी मात्र दिगम्बर वृत्तिए वर्तीने चारित्रनो निवाह न थइ शके ते थी ज्ञानीए उपदेशेली मर्यादापूर्वक श्वेताम्बरपणेथी वर्तमानकाळ जेवा काळमां चारित्रनो निर्वाह करवाने अर्थे प्रवृत्ति छे, ते निषेध करवा योग्य नथी. तेमज बनो आग्रह करी दिगम्बर वृत्तिनो एकांते निषेध करी वस्त्रमूर्छादि कारणोथी चारित्रमा शिथिलपणुं पण काव्य नथी. दिगम्बरपणुं अने श्वेताम्बरपणुं देश, काळ, अधिकारीयोगे उपकारना हेतु छे, एदले ज्यां ज्ञानीए जेम उपदेश्युं तेम प्रवर्त्ततां आत्मार्थज छे." श्रीमान् राजचंद्रना आ विचारो स्वत् १९५३ मां लखाया छे; अने त्यारबादज जैनना सर्व समुदायोमा मतमतांतर टाळी अविभक्त जैन स्थिति लाववानो घणो परिश्रम च ली रह्यो छे. ____ ज्ञानीओने स्वसंप्रदाय मोह होइ के ज नहीं. प्रमोद होइ शके पण मोह न होइ शके. तेओने वस्तुस्थिति प्राप्त करवानोज सतत लक्ष्य रह्या करे छे; तेओना चित्तमां जैन, वेद त, सांख्य के गमे ते दर्शननो पक्षपात होतोज नथी, तेओनी स्थिरता मात्र तत्त्वनी यथार्थता प्रत्येज होय छे. एकवीश वर्षनी वये एटले संवत १९४५ मां तेओना नीचेना लखाएला विचारो तेओनो धर्मआदर्श बतावे छे. " मोक्षना मार्ग बे नथी, जे जे पुरुषो मोक्षरुप परमशांतिने भूतकाळे पाम्या छे, ते ते सघळा सत्पुरषो एकज मार्गेथी पाम्या छे, वर्तमानकाळे पण तेथीज पामे छ; अने नविष्यकाळे पण तेथीज पामशे. ते मार्गमा मतभेद नथी, असरळता नथी, उन्मत्तता नथी, भेदाभेद नथी, मान्यामान्य नथी, ते सरळ मार्ग छे, ते समाधि मार्ग छे, तथा ते स्थिर मार्ग छ; अने स्वाभ विक शांति स्वरुपे छे. सर्वPage Navigation
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