Book Title: Balak ke Jivvichar
Author(s): Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 12
________________ boy.pm5 2nd proof ११. वनस्पतिकाय: प्रत्येक ऊँचे ऊँचे वृक्ष, सुन्दर फल, आकर्षक फूल, हराभरा घास । वनस्पतिकाय के ये विविध स्वरुप है । खेतों में जो सब्जी, अनाज का पाक होता है वह वनस्पति है । बगीचे में जो फूल खिलते हैं, छोटे-बड़े पौंधों पर पत्ते होते है वह वनस्पति है । उद्यान में जो फल आते हैं, बड़े वृक्षों पर हजारों पत्ते होते है वह वनस्पति है । वनस्पति जमीन में अंकुरित होती है। गहरे मूल, कठिन थड, छोटी-बड़ी डाल, विपुल संख्या के पत्तों में, फूलों और फलों में, छाल वि. सभी में जीव होते है। ये वनस्पति स्थावर एकेन्द्रिय जीव है। वनस्पति को हाथ पैर नहीं होते । वनस्पति को पाँच इन्द्रिय नहीं होती । वनस्पति को एक ही इन्द्रिय होती है। स्पर्शनेन्द्रिय । वनस्पति की अनुभव करने की शक्ति केवल स्पर्श तक ही मर्यादित होती है। वनस्पति स्थावर है। उसमें हमारी तरह हलन चलन की स्वतन्त्र शक्ति नहीं है। एक जगह से दूसरी जगह जाने में वो पराधीन है। वनस्पतिकाय के दो प्रकार है। (१) साधारण वनस्पतिकाय (२) प्रत्येक वनस्पतिकाय एक ही शरीर में अनन्त जीव रहे वह साधारण वनस्पतिकाय । एक शरीर में एक ही जीव रहे वह प्रत्येक वनस्पतिकाय । उद्यान, जंगल और खेत में जो वनस्पति दिखाई देती है वह प्रत्येक वनस्पतिकाय है । प्रत्येक वनस्पति का सबसे ज्यादा आयुष्य १०,००० वर्ष का है। सभी प्रत्येक वनस्पतिकाय का आयुष्य इतना लम्बा नहीं होता । वनस्पतिकाय के पास स्पर्श द्वारा अनुभव पाने की शक्ति है । ऐसे वनस्पतिकाय को हमारे द्वारा पीड़ा न पहुँचे तो हम सच्चे जैन हो सकते हैं । वनस्पतिकाय की जीने की और अनुभव पाने की शक्ति को हमारे हाथों से नुकशानी न हो उसके लिए जागृत रहना चाहिए । बालक के जीवविचार • १७ हमको कोई परेशान करे तो हमको अच्छा नहीं लगता। उसी तरह वनस्पतिकाय को भी कोई परेशान करे तो उसे अच्छा नहीं लगता । वनस्पतिकाय लाचार है उसके पास बोलने की शक्ति नहीं है । हमें समझकर ही वनस्पतिकाय को तकलीफ न पहुँचे वैसे रहना चाहिए । खुले मैदान में, जंगल में, बगीचे में, नदी किनारे की हरी घास, लोन पर चलने से, दोड़ने से, बैठने से, खड़े रहने से वनस्पतिकाय के जीवों को वेदना होती है। फूल तोड़कर लेने से बालों में फूल डालने से, फूलों की वेणी को बालों में डालने से, फूलों का हार पहनने से वनस्पतिकाय के जीवों को वेदना होती है। वृक्ष के फल तोडने से, वृक्ष पर झूला खाने से, वृक्ष के ऊपर चढ़ने से वनस्पतिकाय के जीवों को वेदना होती है। फल, फूल या सागभाजी के टुकड़े करने से वनस्पतिकाय के जीवों को वेदना होती है । वनस्पतिकाय के जीवों की सृष्टि बहुत विशाल है। कदम-कदम पे सावधानी रखनी जरुरी है । हर वनस्पति में १. फल, २. फूल, ३. छाल, ४ थड, ५. मूल ६. पत्ते ये छह वस्तु अवश्य होती है। हर वनस्पतिकाय के बीज भी अलग होते हैं। हमारे हाथों से वनस्पतिकाय को पीड़ा न पहुँचे उसके लिए वनस्पतिकाय के इन अलग-अलग अंगों को पहचानना खूब जरुरी है। खाने में, रसोई में वनस्पतिकाय का बहुत ही उपयोग होता है। वनस्पतिकाय का उपयोग जितना ज्यादा होगा उतनी वनस्पतिकाय को पीड़ा ज्यादा होगी । वनस्पतिकाय का उपयोग जितना कम होगा उतनी वनस्पतिकाय को पीड़ा कम होगी। ज्यादा पीड़ा देंगे तो ज्यादा पाप होगा । कम पीड़ा देंगे तो कम पाप होगा। वनस्पतिकाय का उपयोग ही बन्द करना सबसे श्रेष्ठ है। परन्तु हमारे लिए यह शक्य नहीं है। वनस्पति की दया पालने के लिए वनस्पतिकाय का उपयोग कम करना चाहिए । पर्व तिथिओं में तो वनस्पतिकाय का उपयोग होना ही नहीं चाहिए । १८• बालक के जीवविचार

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