Book Title: Balak ke Jivvichar
Author(s): Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 20
________________ boy.pm5 2nd proof २२. पर्याप्त अपर्याप्त पर्याप्ति का काम थोड़ा-सा अटपटा है। सभी जीव अपने अनुरूप पर्याप्ति पूरी नहीं भी कर सकते। कुछ जीव तो पर्याप्ति की शुरूआत करके बीच में ही मर जाते है। कुछ जीव पर्याप्ति की शुरूआत करते हैं और बराबर जी लेते हैं । जो जीव पर्याप्ति अधूरी रखकर मर जाते हैं वे अपर्याप्त जीव कहलाते हैं । जो जीव पर्याप्ति पूर्ण करके जीते हैं वे पर्याप्त जीव कहलाते हैं । जो जीव पर्याप्ति अधूरी रखकर मर जाते हैं वे लब्धि अपर्याप्त कहलाते हैं । जो जीव पर्याप्ति पूर्ण करके जीते हैं वे लब्धि पर्याप्त कहलाते हैं । और एक बात समझनी बाकी है। लब्धि पर्याप्त जीव, जब से पर्याप्ति का आरम्भ करता है तब से लगाकर सभी पर्याप्तियाँ पूर्ण करे, उसमें कुछ समय तो लगता ही है। जहाँ तक सभी पर्याप्ति समाप्त नहीं होती वहाँ तक वो पर्याप्त नही कहलाता । उसके लिए एक दूसरी पहचान है । कुछ ही समय में जो अपनी पर्याप्ति पूर्ण करनेवाला है लेकिन वर्तमान में जो अपनी पर्याप्ति पूर्ण नहीं कर पाया है, उस जीव को करण अपर्याप्त कहते हैं । जिस जीव ने अपनी पर्याप्ति पूर्ण कर ली है उसे करण पर्याप्त भी कहते हैं । लब्धिपर्याप्त और करण पर्याप्त के बीच में कोई फरक नहीं हैं, लब्धि पर्याप्त जीव, करण अपर्याप्त हो सकता है । जीवन जीने के लिए जिस शक्ति की जरूरत पड़ती है वह शक्ति पर्याप्ति द्वारा मिलती है । पर्याप्ति द्वारा जीवन का प्रारम्भ होता है । पर्याप्ति पूर्ण न हो इसका कारण भूतकाल के पापकर्म है । पर्याप्ति पूर्ण हो इसका कारण भूतकाल का पुण्यकर्म है। जीवविचार में हर जीवों के दो भेद करेंगे । १. पर्याप्त जीव २. अपर्याप्त जीव । बालक के जीवविचार • ३३ २३. संज्ञा I हमको मन मिला है। हम हमारे विचारों को पहचान सकते हैं । हमारे विचारों को बदल सकते हैं। हमारे विचारों को सुधार सकते हैं। मन की इसी शक्ति को संज्ञा कहते हैं । पंचेन्द्रिय जीवों के चार भेद हैं। १. मनुष्य, २. देव, ३ तिर्यच, ४. नारकी । इन चारों ही जीवों में सामान्य रूप से संज्ञा होती है। फिर भी मनुष्य और तिर्यंच जीवों में ऐसे भी जीव होते हैं जिनको मन नहीं होता, संज्ञा नहीं होती । अपने विचारों की पहचान इनको नहीं होती। क्योंकि उनके पास सोचने की शक्ति ही नहीं होती । पंचेन्द्रिय होते हुए भी मन न हो ऐसे मनुष्य और तिर्यच जीवों को असंज्ञी कहते हैं । असंज्ञी पंचेन्द्रिय में मनुष्य और तिर्यंच के नाम है । असंज्ञी जीवों में एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय के भी नाम है । असंज्ञी जीवों में मनपसन्द वस्तु का राग होता है। असंज्ञी जीवों में नापसन्द वस्तु का द्वेष होता है । परन्तु इन राग और द्वेष के अनुसार चलते विचार नहीं होते । असंज्ञी जीव मनपसन्द वस्तु को प्राप्त कर खुश होता है। परन्तु मनपसन्द वस्तु प्राप्त करने के लिए लम्बा विचार नहीं कर सकता । असंज्ञी जीव नापसन्द वस्तु को प्राप्त कर नाराज होता है । परन्तु नापसन्द वस्तु को छोड़ने के लिए लम्बा विचार नहीं कर सकता । असंज्ञी जीवों को मन पर्याप्ति नहीं होती । एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों को मन पर्याप्ति नहीं होती । असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच को मन पर्याप्ति नहीं होती । असंज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य को मन पर्याप्ति नहीं होती । ३४ • बालक के जीवविचार

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