Book Title: Balak ke Jivvichar
Author(s): Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 26
________________ boy.pm5 2nd proof ३०. मनुष्य लोक तिर्यक्लोक में जितनी जमीन है, उस जमीन के चारों तरफ सागर है, सागर के बीचो बीच रही हुई जमीन को हम द्वीप कहते हैं। इससे मालूम होता है कि तिर्यक्लोक में असंख्य द्वीप है, और असंख्य समुद्र है। कल्पना करो : पूजा करने की छोटी कटोरी है। उसे पानी से भरी हुई पूजा की छोटी थाली में रखते हैं। फिर इस थाली को हम नास्ता करने की प्लेट में रखते हैं। अब भरी हई प्लेट को खाना खाने की बड़ी थाली में रखते हैं। अब इस थाली को हम पानी ठारने की या आटा गूंथने की परात में रखते हैं। इस परात को उठा के हम बड़े राउन्ड टेबल पर रखते हैं। इस टेबल को हम बड़ी राउन्ड कार्पेट पर रखते हैं। यह कार्पेट जहाँ बिछाई हुई है उसके चारों और बहुत बड़ा मैदान है। थक गये ? नहीं, तो अब इस राउन्ड में क्या क्या आता है, देख लें । १. बड़ा राउन्ड मैदान है, उसके अन्दर राउन्ट कट वाली कार्पेट है जो ग्राउन्ड से छोटी है। २. बड़ी राउन्ड कट कार्पेट है, उसके ऊपर राउन्ड टेबल है जो कार्पेट से छोटा अब प्रश्न यह होगा कि ये कर्मभूमि, अकर्मभूमि और अन्तर्वीप क्या है? उत्तर थोड़ा लम्बा होगा । हमारे भगवान ने मनुष्य के लिए मनुष्यगति और मनुष्यलोक की बातें बहुत ही लम्बी-चौड़ी बताई है। मनुष्यगति तो हमे पता है, मनुष्यलोक की बात को समझना पडेगा । जैन धर्म के अनुसार यह विश्व चौद राजलोक तक फैला हुआ है। उसके तीन विभाग होते हैं। [देखो पेज नं. ४४ का नक्शा] १. ऊर्ध्वलोक, २. अधोलोक, ३. तिच्छालोक । विमानवासी के देवता ऊर्ध्वलोक में जन्म लेते हैं। पातालवासी देवता और नारकी के जीव अधोलोक में जन्म लेते हैं। मनुष्य के जीव तिर्छलोक में जन्म लेते हैं । ति»लोक को मध्यलोक भी कहते हैं क्योंकि वह ऊर्ध्वलोक और अधोलोक के मध्य में आया हुआ है। तिर्छलोक को तिर्यक्लोक नाम से भी पहचान जाता है क्योंकि इसकी ऊँचाई से चोडाई विशेष है । तिर्यक्लोक में ज्यादा ऊपर नहीं जाना है। तिर्यक्लोक में ज्यादा नीचे भी नहीं जाना है। तिर्यक्लोक में चारों तरफ जाना होता है। तिर्यक्लोक मनुष्यगति और तिर्यंचगति का स्थान है। ऊर्ध्वलोक देवगति का स्थान है । अधोलोक नरकगति का स्थान है। अधोलोक के पहले भाग में कुछ देवों के स्थान भी है। तिर्यक्लोक में जमीन भी है और सागर भी है। तिर्यक्लोक में जितनी जमीन है उससे दुगुना स्थान सागर का है। तिर्यक्लोक में जितने सागर है उससे आधा भाग जमीन का है। तिर्यक्लोक की शुरूआत में जमीन है। तिर्यक्लोक के अन्त में सागर है। इस जमीन और सागर के बीच में असंख्य जमीन और सागर है। ३. राउन्ट टेबल है, उसके उपर बड़ी परात है जो टेबल से छोटी है। ४. बड़ी परात है, उसके अन्दर थाली है जो परात से छोटी है। ५. अब इस थाली में जो प्लेट है वो थाली से छोटी है । ६. इस प्लेट में पूजा की थाली है, जो प्लेट से छोटी है। ७. पूजा की थाली में कटोरी है जो पूजा की थाली से छोटी है । [बराबर समझ गये ना? दूसरी बार फिर से पढ़ लो] यह तो उदाहरण है, इसके आधार से हमको द्वीप और सागर की समझ पानी है। सबसे प्रथम द्वीप होता है। उसके बाद सागर होता है। तिर्यक्लोक की व्यवस्था इसी तरह हई है। द्वीप से मध्यभाग की शुरूआत होती है, जहाँ द्वीप पूरा होता है वहाँ से सागर शुरू होता है। इस सागर का फैलाव द्वीप से दुगुना होता है। सागर द्वीप के चारों ओर फैला हुआ होता है. इस सागर के चारों और किनारे आते हैं। जहाँ सागर चारों ओर पूरा होता है वहाँ से दूसरी जमीन, दूसरा द्वीप शुरू होता है। इस द्वीप का फैलाव तो सागर से भी दुगुना होता है। यह द्वीप लम्बा होने के बावजूद भी उसका किनारा आता है। जहाँ द्वीप का किनारा आता है वहाँ से फिर ४६ • बालक के जीवविचार बालक के जीवविचार . ४५

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