Book Title: Balak ke Jivvichar
Author(s): Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 18
________________ १९. पंचेन्द्रिय नारकी भयंकर दुःखों का जहाँ सतत सामना करना पड़ता है उस गति का नाम है नरक । जो पंचेन्द्रिय रुप में वहाँ जन्म ले उसे नारकी कहते हैं । नरकगति में जन्म लेने वाले जीवों को हमेंशा वेदना भुगतनी पड़ती है । नरकगति में शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाय तो भी मर नहीं सकते और पारे की तरह शरीर वापिस जुड जाता है और फिर नई-नई तकलीफों का सामना करना पड़ता है । नरकगति में अतिशय भूख लगती है, खाने को कुछ नहीं मिलता । नरकगति में अतिशय प्यास लगती है, पीने को कुछ नहीं मिलता । नरकगति में अतिशय गरमी लगती है, ठण्ढक करने को कुछ नहीं मिलता। + नरकगति में अतिशय ठण्डी लगती है, उष्मा मिल नहीं सकती । नरकगति में अतिशय गन्दकी होती है, सफाई के लिए कुछ नहीं मिलता। नरकगति में अतिशय अन्धेरा होता है, उजाला करने के लिए कुछ नहीं मिलता। नरकगति में जीव एक दूजे के साथ लड़ाई करते हैं, लेकिन कोई छुडानेवाला नहीं होता । नरकगति में परमाधामी देव अत्याचार करते हैं लेकिन कोई बचानेवाला नहीं होता । नरकगति में कभी आराम नहीं मिलता और आपत्तिओ को पार नहीं है। नरकगति में कभी शान्ति नहीं मिलती और अशान्ति का पार नहीं है। नरकगति में हमेंशा रोना ही पड़ता है और आश्वासन देनेवाला कोई नहीं है। नरकगति में कंटको की बारिश होती है, शरीर खूनभरा हो जाता है। नरकगति में कांच के टुकडों पर चलना पड़ता है, पेरों में बड़े-बड़े चीरें पड़ जाते हैं। नरकगति में हथियारों से मार खानी पड़ती है, उससे छूट नहीं पाते । नरकगति में आग में जलना पड़ता है, उससे भाग नहीं सकते। नरकगति में बरफ में ठिठुरना पड़ता है, बचने का कोई उपाय नहीं है। नरकगति में हजारों लाखों, करोडो, अबजों, अगणित वर्षो तक वेदना भुगतनी पड़ती है। नारकी के जीवों को हम परेशान कर ही नहीं सकते। उनकी तकलीफों को सुनकर उनके लिए दया का विचार करें तो हमारा धर्म सफल गिना जाता है। मैं जैन हूँ। नारकी के जीवों की दया के विचारों के लिए जागृत रहूँगा। नरक में न जाना पड़े वैसा जीवन मैं जिऊँगा । बालक के जीवविचार • २९ + + + + + + ++ + boy.pm5 2nd proof + २०. पर्याप्ति आत्मा शरीर में रहकर जीता है। आत्मा को शरीर बनाने के लिए और शरीर में रहने के लिए छह शक्ति की जरुरत पड़ती है। इन छह शक्ति को छह पर्याप्ति कहते हैं । 1 १. आहार पर्याप्ति २. शरीर पर्याप्त ३. इन्द्रिय पर्याप्ति ४. श्वासोश्वास पर्याप्ति ५. भाषा पर्याप्ति ६. मन पर्याप्ति जो आत्मा इन शक्तियों को सम्पूर्ण प्राप्त कर ले वह पर्याप्त जीव कहलाता है जो आत्मा इन शक्तियों को सम्पूर्ण प्राप्त नहीं करता, वह अपर्याप्त जीव कहलाता है। एकेन्द्रिय जीवों को पर्याप्ति होती है। विकलेन्द्रिय जीवों को पाँच पर्याप्ति होती है। पंचेन्द्रिय जीवों को छह पर्याप्ति होती है। एकेन्द्रिय जीव अगर चार पर्याप्ति प्राप्त कर ले तो वह पर्याप्त जीव कहा जाता है । । एकेन्द्रिय जीव अगर चार पर्याप्ति प्राप्त न करें तो वह अपर्याप्त कहा जाता है विकलेन्द्रिय जीव पाँच पर्याप्ति प्राप्त कर ले तो वह पर्याप्त जीव कहलाएगा। विकलेन्द्रिय जीव पाँच पर्याप्ति प्राप्त न करे तो वह अपर्याप्त जीव कहलाएगा। पंचेन्द्रिय जीव छह पर्याप्ति प्राप्त करे तो वह पर्याप्त जीव कहलाएगा। पंचेन्द्रिय जीव छ पर्याप्ति प्राप्त न करे तो वह अपर्याप्त जीव कहलाएगा। याद रख लो + एकेन्द्रिय जीवों के पास चार पर्याप्ति होती है। छह पर्याप्त नहीं होती। फिर भी चार पर्याप्ति पूर्ण करने वाले एकेन्द्रिय जीव को अपर्याप्त नहीं कहा जाता । चार पर्याप्त पूरी करनेवाले एकेन्द्रिय जीव को पर्याप्त ही कहते हैं । विकलेन्द्रिय जीवों के पास पाँच पर्याप्ति होती है। छह पर्याप्त नहीं होती। फिर भी पाँच पर्याप्ति पूर्ण करनेवाले विकलेन्द्रिय जीव को अपर्याप्त नहीं कहा जाता । पाँच पर्याप्ति पूरी करनेवाले विकलेन्द्रिय जीव को पर्याप्त ही कहा जाता है । एकेन्द्रिय जीव को चार ही पर्याप्ति होती है। एकेन्द्रिय को पाँच पर्याप्ति नहीं होती । एकेन्द्रिय जीव को छह पर्याप्त नहीं होती । विकलेन्द्रिय जीव को पाँच ही पर्याप्ति होती है। विकलेन्द्रिय जीव को छह पर्याप्त नहीं होती । ३० • बालक के जीवविचार +

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