________________ x | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य स्मृति आज भी मुझे आनंदित कर देती है। 2012 में पूज्य विद्यानंद जी महाराज का 50 वाँ मुनि दीक्षा समरोह और उनसे मिलने का 50 वाँ वर्ष होना मेरे लिए एक दुर्लभ संयोग ही था। साथ ही पुनः यह एक सुखद आश्चर्य था कि श्वेताचार्य मुनिमहाराज ने मुझे 29-07-2012 में 'चारित्र चक्रवर्ती प्रशस्ति' तथा 'एक लाख रुपए के नकद पुरस्कार से नवाजा। मेरी प्रार्थना है कि मुनिमहाराज मेरी यह पुस्तक मेरी उनके प्रति गहन श्रद्धा तथा आदर समझ कर स्वीकारे और मुझे आशिर्वाद विदुषी मित्र प्रो. बी. वाय. ललिताम्बा जी, जिनसे मैं गत पचास वर्ष से परिचित हूँ मेरी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद कराने में मेरी सहायता करती आ रही हैं। विदुषी मित्र प्रो. प्रतिभा मुदलियार, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर ने मेरी इस पुस्तक का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है। उक्त पुस्तक का अनुवाद मौलिक बनाने के लिए उन्होंने काफी प्रयत्न किये हैं। वास्तव में अपनी व्यस्तता के बावजूद उन्होंने उक्त पुस्तक के अनुवाद की विभिन्न समस्याओं पर मेरे साथ विचार विमर्श किया है और इस पुस्तक के अनुवाद में अपनी विशेष रुचि, उत्सुकता और विद्वत्ता दिखाई ___ डॉ. जोडट्टी जी, अवकाश प्राप्त हिंदी शिक्षक, ने उक्त पुस्तक का अवलोकन जैनधर्म के परिप्रेक्ष्य में किया है। उन्होंने परम पूज्य कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक जी के सुझावों तथा मार्गदर्शन का अनुपालन किया है। इसके लिए उन्होंने बेलगाँव से श्रवणबेळगोळ तथा मैसूर की बार बार यात्रा की हैं। श्री प्रकाश, श्रीमान प्रीटेक्स, विजयनगर, बेंगलूर तथा उनके संकाय ने इस पुस्तक को सुंदरता से छापने में अपना विशेष सहयोग दिया है। ___ अंत में, मैं उपर्युक्त सभी व्यक्तियों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ तथा ह्रदय से अपने आभार प्रकट करता हूँ। धन्यवाद प्रो. हंप. नागराज्जय (हंपना) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org