Book Title: Avashyaka Kriya Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 8
________________ आवश्यक क्रिया १८१ फिर पा लेते है और कभी-कभी तो पूर्व-स्थिति से आगे भी बढ़ जाते हैं। ध्यान ही श्राध्यात्मिक जीवन के विकास की कुंजी है। इसके लिए अन्तर्दृष्टि वाले बारबार ध्यान-कायोत्सर्ग किया करते हैं। ध्यान द्वारा चित्त-शुद्धि करते हुए वे आत्मस्वरूप में विशेषतया लीन हो जाते हैं। अतएव जड़ वस्तुओं के भोग का परित्यागप्रत्याख्यान भी उनके लिए साहजिक क्रिया है। इस प्रकार यह स्पष्ट सिद्ध है कि आध्यात्मिक पुरुषों के उच्च तथा स्वाभाविक जीवन का पृथक्करण ही 'आवश्यक-क्रिया' के क्रम का श्राधार है। जब तक सामायिक प्रास न हो, तब तक चतुर्विंशति-स्तव भावपूर्वक किया ही नहीं जा सकता, क्योंकि जो स्वयं समभाव को प्राप्त नहीं है, वह समभाव में स्थित महात्मात्रों के गुणों को जान नहीं सकता और न उनसे प्रसन्न होकर उनकी प्रशंसा ही कर सकता है। इसलिए सामायिक के बाद चतुर्विंशतिस्तव है । चतुर्विशतिस्तव का अधिकारी वन्दन को यथाविधि कर सकता है। क्योंकि जिसने चौबीस तीर्थकरों के गुणों से प्रसन्न होकर उनकी स्तुति नहीं की है, वह तीर्थकरों के मार्ग के उपदेशक सद्गुरु को भावपूर्वक वन्दन कैसे कर सकता है। इसी से वन्दन को चतुर्विशतिस्तव के बाद रखा है। __ वन्दन के पश्चात् प्रतिक्रमण को रखने का आशय यह है कि आलोचना गुरु-समक्ष की जाती है। जो गुरु-वन्दन नहीं करता वह अालोचन का अधिकारी ही नहीं । गुरु-वन्दन के सिवाय की जानेवाली आलोचना नाममात्र की आलोचना है, उससे कोई साध्य-सिद्धि नहीं हो सकती। सच्ची आलोचना करनेवाले अधिकारी के परिणाम इतने नम्र और कोमल होते हैं कि जिससे वह आप ही आप गुरु के पैरों पर सिर नमाता है । ___कायोत्सर्ग की योग्यता प्रतिक्रमण कर लेने पर ही आती है। इसका कारण यह है कि जब तक प्रतिक्रमण द्वारा पाप की आलोचना करके चित्त-शुद्धि न की जाय, तब तक धर्म-ध्यान या शुक्लध्यान के लिए एकाग्रता संपादन करने का, जो कायोत्सर्ग का उद्देश्य है, वह किसी तरह सिद्ध नहीं हो सकता । अालोचना के द्वारा चित्त-शुद्धि किये बिना जो कायोत्सर्ग करता है, उसके मुँह से चाहे किसी शब्द-विशेष का जप हुआ करे, लेकिन उसके दिल में उच्च ध्येय का विचार कभी नहीं पाता । वह अनुभूत विषयों का ही चिन्तन किया करता है। ___ कायोत्सर्ग करके जो विशेष चित्त-शुद्धि, एकाग्रता और आत्मबल प्राप्त करता है, वही प्रत्याख्यान का सच्चा अधिकारी है। जिसने एकाग्रता प्राप्त नहीं की है और संकल्प-बल भी पैदा नहीं किया है, वह यदि प्रत्याख्यान कर भी ले तो मी उसका ठीक-ठीक निर्वाह नहीं कर सकता । प्रत्याख्यान सबसे ऊपर की 'श्रावश्यक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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