Book Title: Avashyaka Kriya
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 20
________________ आवश्यक क्रिया २६३ वैदिक सन्ध्या के मन्त्र व बाक्य(१) “ममोपात्तदुरितक्षयाय श्रीपरमेश्वरप्रीतये प्रातः सन्ध्योपासनमहं करिष्ये ।" -~-संकल्प-वास्य । (२) ऊँ सूर्यश्च मा मनुश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम् । यद् राव्या पापमकार्ष मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदवलुम्पतु यत् किंचिद दुरितं मयीदमहममृतयोनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा । -कृष्ण यजुर्वेद । (३) ॐ तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमही धियो यो नः प्रचोदयेत् । ---गायत्री। जैन-- (१) पायच्छित्त विसोहणत्थं करेमि काउस्सग्गं । (२) जं जं मणेण बद्धं, जं जं वारण भासियं पावं । जं जं काएण कयं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ।। (३) चन्देसु निम्मलयरा, श्राइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगम्भीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसन्तु ।। पारसी लोग नित्यप्रार्थना तथा नित्यपाठ में अपनी असली धार्मिक किताब 'अवस्ता' का जो-जो भाग काम में लाते हैं, वह 'खोरदेह अवस्ता' के नाम से प्रसिद्ध है। उसका मजमन अनेक अंशों में जैन, बौद्ध तथा वैदिक-संप्रदाय में प्रचलित सन्ध्या के समान है । उदाहरण के तौर पर उसका थोड़ा सा अंश हिंदी भाषा में नीचे दिया जाता है। ___ अवस्ता के मूल वाक्य इसलिए नहीं उद्धृत किए हैं कि उसके खास अक्षर ऐसे हैं, जो देवनागरी लिपि में नहीं हैं। विशेष जिज्ञासु मूल पुस्तक से 'असली पाठ देख सकते हैं। (१) दुश्मन पर जीत हो। -खोरदेह अवस्ता, पृ०७॥ (२) मैंने मन से जो बुरे विचार किये, जबान से जो तुच्छ भाषण किया और शरीर से जो हलका काम किया; इत्यादि प्रकार से जो-जो गुनाह किये, उन सत्र के लिए मैं पश्चात्ताप करता हूँ। —खो० अ०, पृ० ७॥ (३) वर्तमान और भावी सब धर्मों में सब से बड़ा, सब से अच्छा और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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