Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 12
________________ 4. शांतिरक्षक : पूना श्रमण-संघ सम्मेलन का सुचारु रूप से संचालन करने हेतु ई. 1987 में यह पद प्रदान किया गया। 5. इतिहास केसरी : सन् 1983 में श्री मनोहरमुनि जी म. सा. के उपाध्याय-पद समारोह में इन्हें इतिहास-केसरी उपाधि दी गई। प्रदाता थे- आचार्य अमरसिंह जैन श्रमण संघ के संत प्रमुख श्री रतनमुनि जी म. सा.। 6.निर्भीक वक्ताः सन् 1963 में श्री एस. एस. जैन सभा, रायकोट द्वारा प्रदत्त। 7. प्रवचन दिवाकर : श्री एस. एस. जैन सभा, फरीदकोट द्वारा ई. 1985 में यह पद प्रदान किया गया। 8. प्रज्ञामहर्षि : सन् 1999 मद्रास के टी. नगर श्री संघ ने आपको इस पद से सम्मानित किया। 9. दक्षिणकेसरी : सन् 2000 के रायचूर वर्षावास में तत्रस्थ श्री संघ ने आपको उक्त पद से सम्मानित किया। विहार-यात्रा: जैन श्रमणों का जीवन 'चरैवेति चरैवेति' उक्ति का ही पर्याय है। बस चलते रहो। वह भी पैदल विचरण, कितना कष्टदायक। फिर भी धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु ये यावज्जीवन एक प्रांत से दूसरे प्रान्त में परिभ्रमण करते रहते हैं। आपश्री का विचरण क्षेत्र अति विस्तृत है। यथा- पंजाब, राजस्थान, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आंधप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु आदि / इन प्रान्तों के छोटे-बड़े नगरों में घूम-घूम कर आपश्री ने धर्मध्वजा फहराई। वर्तमान में आप उत्तरभारत में पंजाब के क्षेत्र में विचरण कर रहे हैं। साहित्य सेवा: परम श्रद्धेय गुरुदेव प्रवचनकार होने के साथ-साथ साहित्यकार भी हैं। आप आगम शास्त्र के महान् मर्मज्ञ हैं एवं आगमों की व्याख्या अत्यन्त सुन्दर ढंग से करते हैं। जैन सिद्धान्तों को भी आप सहज एवं सरल ढंग से व्याख्यायित करने में सिद्धहस्त हैं। आप द्वारा लिखित, संपादित, अनूदित, व्याख्यायित कृतियों की सूची इस प्रकार है (1) पंजाब श्रमण संघ गौरव आचार्य श्री अमरसिंह जी म. (2) अनोखा तपस्वी श्री गैंडेरायजी म. (जीवनी द्वय) (3) बृहद् आलोचना (लाला रणजीतसिंह जी कृत) (संपादन-अनुवाद) (4) देवाधिदेव रचना (संपादित-अनुवादित) (5) तत्त्व चिंतामणि भाग-1, 2, 3, (परिभाषित एवं संपादित) (6) श्रावक कर्त्तव्य (श्रावक. आचार की मार्गदर्शिका) (7) शुक्ल ज्योति (जीवनी) (8) शुक्ल स्मृति (जीवनी)

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