Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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प्रस्तावना. दरेक आत्मामां असाधारण अज्युदयने आपनार सामर्थ्य अने शक्तिओ बीजरुपे रहेली . तेमने मनुष्य निश्चय बळथी मेलवी शके . निश्चयबळ ए काइ साधारण प्रकारनुं बळ नथी, पण ते मनुष्य जीवननी चंचामां चंची नूमिकामां जवानुं साधन छे. जैन योगविद्यानो महान् आरंन जेने माटे प्ररूपित थयेलो बे, तेवा मनना निग्रहनु फळ पण निश्चयबळ डे. मनुष्यनी अंतर्त्तिमां जे उच्च अनिलाषाओ अने शुद्ध विचारो प्रगटे , तेमनी कृतार्थता निश्चयबळमांज रहेली छे. जेनामां ए अद्भुत बळ रहेनु छ, ते धर्मनी क्रिया अने तत्त्वमार्गनो पथिक बनी शके छे. विश्वोपकारी नगवान् तीर्थकरोए प्राणीओना हितने माटे जे आकारुप नियमो प्ररूपेला जे, ते बधा निश्चयबळथीज पाळी शकाय छे. ते निश्चय बळने दृढ राखवाने माटेज दान, शील, तप अने जाव-ए चतुर्विध धर्मनी प्ररूपणा करवामां प्रावी . ए चार स्तंनोने अवलंबीने सर्वधर्मशिरोमणि आईतधर्मनो सुंदर प्रासाद रहेलो . निश्चयबळ अथवा मनोबळने धारण करनार जव्य आत्माए पवित्र अने सुंदर प्रासादमां वास करवानो अधिकारी थाय . ते निश्चयबळने टकावी राखवाने माटे जे गुणोनी आवश्यकता , ते गुणो आहत धर्मशास्त्रमा दर्शावेला , ते शास्त्र उद्घोषणा करे ने के, “निश्चयबळ मेळववाने माटे सद्वर्तन धारण करजो. उदासीनता, खेद, चिंता अने जय जे मनोबळने बुद्धं करी नांखनारा छे अने आत्माना जावी उदयने रोकनारा तेमने हृदयमा पेसवा देशो नहीं निरंतर आत्मचितवन करजो, कटुतामां मधुरता शीखजो. एटले उखमां सुखने मानी लेतां शीखजो. मुःखोने अनुननी ढीला थशो नहीं अने संतापना रोदणां रमशो नहीं. तमारा मनने कर्म प्रकृतिनुं ज्ञाता अने तत्त्वज्ञानने सेववार्नु अधिकारी वनाववा निश्चयवळ आपजो, तेथी तमोने मुःखमा प्रसन्नता राखवातुं कार्य जरापण कग्नि जणाशे नहीं."
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