Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ (३): प्रकाशो आपेला जे. प्रथम प्रकाशनुं नाम सम्यक्त्त्वनिर्णय राखे, जे. आ प्रकाशनी अंदर आ ग्रंथना अधिकारीनो निर्णय कर आत्मा शब्दनो अर्थ, आत्माना प्रकार, अने सम्यक्त्वनुं स्वरूप विस्तारथी निरूपण करेखें . श्रावकपणाना तत्त्वने प्रतिपादन करनार सम्यकत्त्व तत्त्वने प्ररुपतां ग्रंथकारे तेने अंगे आत्मशुद्धिनो विषय घणो सरसरीते वर्णव्यो छे. मनुष्यनी मानस शक्तिओ अने गुणो केवीरीते विकाशने पामे अने असाधारण मानसशक्तिओ शाथी खीले ? ए वात आत्मशुधिना विषयथी स्पष्ट थायडे. ते उपर आपेल प्रभास चित्रकारनुं दृष्टांत ए विषयर्नु यथार्थ स्पष्टीकरण करे. सम्यक्त्वना दोना प्रसंगमां पंचविध विनयन स्वरुप प्रतिपादन करतां देवपूजा अने चैत्य नक्तिनो विषय घणोज चित्ताकर्षक रचाएलो . पवित्र प्रभुनी पूजा-नक्तिथी हृदय उपर झंडामां ऊंडी जे लावना पडेने, अने तेथी हृदय जे द्रवीजूत थायछे, तेनो चितार ग्रंथकारे ते विषयनी चर्चामां दर्शावेलो . अने ते उपर असरकारक दृष्टांतो आपी प्रस्तुत विषयने अत्यंत समर्थ बनाव्यो बे; जे वांचतां आस्तिक हृदय जावोब्लासथी उन्नराइ जायजे. सम्यकत्त्वनी विविध शुधि दर्शावतां ग्रंथकारे सम्यक्त्वनी महत्तानुं जान कराव्युं अने पनी तेना पुषणो ने दृष्टांत पूर्वक समजावी सम्यक्त्वना आठ प्रभावकनुं सविस्तार ब्यान आपेलुं जे. जे प्रसंग सम्यक्त्वना अधिकारी आत्माओने अति आनंद उपजावे . ते नपरथी ग्रंथकारे सिफ करी बताव्यु डे के, दरेक जैने सम्यक्त्वनी नावनाने माटे जच्चपणे गतिमान् थर्बु जोइए, ते प्रमाणे गतिमान् थतां उच्च वर्तन राखवा प्रयत्न करवो जोइए अने कल्याणकारक प्रवृत्ति प्राचरवी जोइए अने तेथी दरेक जैने सम्यक्त्वना अनावक थवं जोइए. प्रवचन, धमेकथा, वादविवाद, निमित्तझान, तप, विद्यासिषि अने शासनशान ए उच्च साधनोथी प्रजावक थइ शकाय , अने प्रनावनाने माटे ते साधनो मेळववानी आवश्यकता बे, ए वात विधान् ग्रंथकारे जच्च आशयथी प्रतिपादन करेली . आ नवोदधिमाथी प्रसार थवा इच्छा राखनारा नव्यात्माए धारण करेला सम्यक्त्वने सर्वदा विभूषित राख जोइए. ए जद्देशने लश्ने आहेत आगाममां दर्शावेला सम्यक्त्वना जूषणो विषे ग्रंथकारे रसिक विवेचन करेलुं छे. त्यार बाद सम्यक्त्वना पांच लक्षणो हेतुपूर्वक उदाहरणो आपी समजाव्या . पी प्रकारनी यतना, आगार, छ नावना अनेक स्थानकना शुफ स्वरूप दर्शावी ए प्रथम प्रकाशने पूर्ण करवामां आव्यो बे. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 464