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दैवतगणपौढप्रतापोदयात् गुप्तमहामन्त्राक्षरा पेढे पोडो च काव्ये स सूरिरशोबालकुन्तल समपुद्गल श्री रजनिस्वामी च पलाशवृक्षमूलात् आविराल । शालनप्रभावको जातः ।
१३६८ वर्षे इदं च विम्ब श्री साम्भतीर्थ समायाता भविलानुप्राहणाय । इत्थं कालापेक्षया नानाभवस्य नानानामा नानाभवल्या पूजितोऽयं परमेश्वरः । सर्वार्थसिद्धदाता जातस्त्वेषां द्वात्रिंशता प्रबन्धैर्वद्ध श्री स्तम्भनाथचरितमिद। श्री पत्र द्विषोऽशेऽभूत् बन्धोऽभयदेवसूरिकथा ॥ ___इति अमन्दजगदानन्ददायिनि आचार्य श्री मेरुतुंगविरचिते देवाधिदेवमहात्म्य शास्त्र श्री स्तम्भनाथचरिते द्वात्रिंशत्प्रवन्धे वन्धुरे द्वात्रिंशतमः प्रबन्धः समर्थितः । समाप्त चेदं श्री स्तम्भनाथचरितम् । ___ सं० १४१३ के उपर्युक्त प्रवन्ध में स्तम्भन-पार्श्वनाथ के प्रकटीकरण का समय सं० ११३१ दिया है । इससे नवांगवृति रचना के बाद यह घटना हुई-सिद्ध होता है। अभयदेवसरिजी का स्वर्गवास सं० ११३५ या सं० ११३९ में कपडवंज में हुआ। र
| खरतरगच्छ पदावली के अनुसार आप चतुर्थ देवलोक में हैं और तीसरे भव में मेक्षिगामी होंगे यथाः
" भणिय तित्थयरेहि महा विदेहे भवमि तइयम्मि, तुम्हाण चेव गुरूगो सिग्धं मुक्तिं गमिस्तंति ॥१॥ कावाणिज्ये नगरे श्री अभयदेवादिवम् ,
गताः चतुर्थ देवलोके विजयिता सन्ति ॥" आचार्य अभयदेवसूरिजी की निम्नोक्त रचना प्राप्त हैं। १ स्थानांग वृति (सं० ११२० पाटण) १६ पंच निग्रन्थी १४२५० (ग्रन्थाग्रन्थ) *
१७ आगम अष्टोतरी २ समवायाङ्ग वृति (सं० ११२० पाटण) योनिका
३५७५ * ३ भगवती वृति (सं० ११२८ पाटण)
१९ पुद्गल पट्ििशका
पुद्गल पटनाशका १८६१६ *
२० आराधना प्रकरण ४ शाता सूत्र वृति (सं० ११२० विजया २१ आलेायणा विधि प्रकरण
___ दशमी पाटण ३८०० * २२ स्वधर्मी वात्सल्य कुलक ५ उपाशक दशांक सूत्र वृति ८१२ * २३ जयतिहुयण स्तोत्र
गा. ३० ६ अंतकृद्दशा सूत्र वृति ८९९ * २४ पाश्र्ववस्तु स्तव [देवदुत्थिय] गा. १६ ७ अनुतरोपपातिक सूत्र वृति १९२ * २५ स्तंभन पार्श्व स्तव गा. ८ ८ प्रश्नव्याकरण सूत्र वृति ४६०० * २६ पाख किषितका (सुरनर किन्नर) ९ विपाक सूत्र बृति ५०० * २७ विस्तका (जैसलमेर भंडार) गा. २६
મહાવીર જયંતિ અંક
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