Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 3
________________ स्वकथन जीवन में कुछ पल ऐसे आते है जब मनुष्य को अपने जीवन का मुल्यांकन करने के लिए सोचना पड़ता है। यही सोच मनुष्य को अपने जीवन अनुभव संसार के सामने प्रस्तुत करने का सुअवसर प्रदान करती है। आस्था के नए आयाम प्रकट करती है जो नर को नारायण बनाती है। मेरा जीवन आस्था का सफर है। आस्था का यह सफर जीवन को हर क्षेत्र में प्रभावित करता है। मैंने अपने इस सफः को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत करने की चेष्टा की है। मेरा मानना है कि आस्था ही जीवन है, श्रद्धा है, देव, गुरू व धर्म का स्वरूप है। आस्था जी सम्यक्त्व है। आस्था के माध्यम से अर्हत अवस्था प्राप्त की जा सकती है। आस्था से गुरू के चरणों में शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त होता है। आस्था से तीर्थ यात्रा की जाए तो व्यक्ति को यात्रा का फल मिलता है। आस्था से बंधे मैं और मेरा धर्म भ्राता रविन्द्र जैन एक दूसरे के प्रति समर्पित भाव से जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आस्था ही है जो जीवन के हर क्षेत्र में नए आयाम खोलती है। मेरी आस्था की यात्रा में मुझे देव, गुरू व धर्म की सेवा करने का अवसर मिला है। प्रस्तुत पुस्तक इसी आस्था की कहानी है। इस में मैंने अपने किए संस्था निर्माण, साहित्य व तीर्थ यात्राओं का वर्णन संक्षिप्त व आस्था पूर्वक वर्णन किया है। इस आस्था के सफर ने पंजाबी जैन साहित्य के अनुवाद को जन्म दिया। स्वतन्त्र हिन्दी-पंजाबी जैन साहित्य लेखन व सम्पादन को जन्म दिया। आचार्य, उपाध याय, साधु, साध्वी के दर्शन किए। उनसे ज्ञान प्राप्त किया। अनेकों श्रावकों से धर्म प्रचार की प्रेरणा मिली। यह आस्था का सफर ही था जिस ने मुझे जैन

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