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संतान नित्य है या अनित्य है ? इस प्रकार से दोनों विकल्पों में दूषण दिखाते हैं। पृथक् को अपृथक् कहना यह संवृत्ति है उसी का नाम संतान है ऐसा कहने पर आचार्य उस संतान का निराकरण करते हैं । प्रत्येक वस्तु में चार प्रकार का विकल्प करना शक्य नहीं है इस प्रकार बौद्ध अपने पक्ष का समर्थन करता है। सर्वथा अवक्तव्य वस्तु “अवक्तव्य" इस शब्द से भी नहीं कही जा सकेगी। सत् वस्तु में ही विधि और निषेध घटते हैं, असत् वस्तु में नहीं । एक ही वस्तु में भाव और अभाव दोनों धर्म रहते हैं किन्तु किस तरह से उनकी मान्यता उचित है ? इसका स्पष्टीकरण । एक वस्तु में एकत्व, द्वित्व आदि संख्यायें बिना बाधा के सम्भव हैं इसी का स्पष्टीकरण करते हैं संवृत्ति शब्द का क्या अर्थ है ? तत्त्व अवाच्य क्यों है ? तत्त्वों का अभाव होने से ही अवाच्यता है तब तो शून्यवाद सिद्ध हो जावेगा। विनाश स्वभाव से ही होता है ऐसा मानने पर जैनाचार्य विनाश और उत्पाद दोनों को सहेतुक सिद्ध करते हैं। विनाश और उत्पाद घट से भिन्न हैं या अभिन्न ? इस पर विचार किया जाता है। बौद्धाभिमान पांच स्कंध अवास्तविक हैं। अवास्तविक स्कंधों में उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य घटित नहीं हो सकते । बौद्ध एकत्व प्रत्यभिज्ञान को नहीं मानता है किन्तु जैनाचार्य उसको सत्य सिद्ध करते हैं। बौद्ध प्रत्यभिज्ञान को पृथक् प्रमाण नहीं मानता है किन्तु जैनाचार्य उसे पृथक् प्रमाण सिद्ध करते हैं। सांख्य सर्वथा नित्य में प्रत्यभिज्ञान को स्वीकार करता है किन्तु जैनाचार्य कथंचित् क्षणिक में प्रत्यभिज्ञान को स्वीकार करते हैं। स्थिति को न मानने पर प्रत्यभिज्ञान सम्भव नहीं है । सर्वथा नित्यकांत में भी प्रत्यभिज्ञान नहीं हो सकता है । एक वस्तु में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप से स्वभाव भेद होने पर भी नानात्व, विरोध आदि दोष सम्भव नहीं हैं। प्रत्येक वस्तुएं चल और अचल रूप हैं, इसका समर्थन ।
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