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योग भी उत्पाद व्यय को एक हेतुक नहीं मानता है उसका निराकरण
उत्पाद और विनाश में सर्वथा अभेद नहीं है ।
उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य में भेद न होने से वस्तु त्रयात्मक कैसे है ? वस्तु त्रयात्मक है पुनः अनंत धर्मात्मक कैसे कही जावेगी ?
चतुर्थ परिच्छेद
कोई जैनादि तटस्थ जन शंका कर रहे हैं और वैशेषिक अपने पक्ष को पुष्ट करते हुए समाधान दे रहे हैं ।
वैशेषिक समवाय सम्बन्ध से एक अवयवी अनेक अवयवों में रहना मानते हैं उसका खंडन । वैशेषिक भी हमारे कथंचित् तादात्मय में दोपारोपण नहीं कर सकते हैं।
योगाभिमत सामान्य और समवाय का निराकरण |
सामान्य और समदाय की चर्चा के प्रसंग में प्रागभाव आदि का विचार किया जा रहा है। सामान्य, समवाय और पदार्थ वैशेषिक मत में ये तीनों ही सिद्ध नहीं होते हैं ।
सत्ता सामान्य सत् रूप समवाय से असम्बद्ध है और समवाय असत् रूप भिन्न समवाय से असम्बद्ध है अतः दोनों में भेद है । इस प्रकार योग के कहने पर जैनाचार्य कह रहे हैं । परमाणु पररूप परिणमन नहीं करते हैं, ऐसा मानने में दोषारोपण करते हैं।
कार्य को भ्रान्त कहने पर परमाणु रूप कारण भी भ्रान्त ही है ।
सांख्य कारण और कार्य में सर्वथा तादात्म्य मानता है, जैनाचार्य उसका निराकरण करते हैं।
द्रव्य और पर्यायों में कथंचित् भेद और अभेद दोनों सिद्ध हैं।
द्रव्य और पर्यायों को योग सर्वथा भिन्न मानता है, किन्तु जैनाचार्य द्रव्य पर्याय में अभेद सिद्ध कर रहे हैं।
जैनाचार्य द्रव्य और पर्यायों में कथंचित् भेद को भी सिद्ध कर रहे हैं ।
वस्तु का लक्षण असाधारण रूप है, ऐसा जैनाचार्य सिद्ध करते हैं ।
द्रव्य और पर्याय इन दोनों के लक्षण भिन्न-भिन्न हैं। इस बात को जैनाचार्य स्पष्ट करते हैं ।
पंचम परिच्छेद
बौद्ध धर्म और धर्मी को अपेक्षाकृत ही मानते हैं, उनका पूर्व पक्ष
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