Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 7
________________ [6] अनु+योग के संयोग से निर्मित हुआ है। यह अनुकूल अर्थवाचक सूत्र है। सूत्र के साथ . अनुकूल, अनुरूप या सुसंगत संयोग अनुयोग है। कोई भी शास्त्र हो जब तक उसके मूल पाठों के साथ अनुकूल अर्थ का समायोजन नहीं किया जाएगा, जब तक पाठक उसका सही अर्थ नहीं समझ पायेगा। परिणाम स्वरूप अर्थ की जगह अनर्थ होने की संभावना हो सकती है। जैसे 'अजैर्यष्टव्यम्' पद है। यदि इसका अर्थ. तीन साल पुराने नहीं उगने योग्य धान्य से यज्ञ करना (दान देना या त्याग देना) के स्थान पर बकरों से यज्ञ करना कर दिया जाय तो जैनधर्म का अहिंसा सिद्धान्त खण्डित हो जाता है। इसलिए शास्त्र के प्रत्येक शब्द, वाक्य का उसके अनुरूप अर्थ आवश्यक है। जैनागमों में कई प्रकार के सूत्र हैं यथा - संज्ञासूत्र, स्वसमयसूत्र, परसमयसूत्र, उपसर्गसूत्र, अपवादसूत्र, जिनकल्पिकसूत्र, स्थविरकल्पिकसूत्र आदि। इन विविध सूत्रों का यथायोग अनुयोग (अर्थ के साथ यथायोग अनुयोजन) यदि नहीं किया जाय तो अनिष्ट होने की ज्यादा सम्भावना रहती है। साधक की जब तक अनुयोग दृष्टि विकसित न हो तब तक वह अपवाद सूत्र को उत्सर्ग सूत्र समझ कर तदनुसार आचरण करके साधक संयम से च्यूत भी हो सकता है। इसी कारण अनुयोग द्वार सूत्र की समग्र आगमों को और उसकी व्याख्याओं को समझने में कुंजी रूप माना गया है। शास्त्रों का जटिल और दुरुह अर्थों का रहस्य केवल व्याकरण के द्वारा नहीं खुल सकता, उसके लिये अनुयोग के द्वारों (उपांगों-तरीकों) का होना भी आवश्यक है ताकि आसानी से शास्त्र के प्रत्येक शब्द का सुक्ष्मता से ज्ञान हो सके। इसीलिए अनुयोग के साथ द्वार शब्द रखा गया है - अनुयोग - अनुकूल सुसंगत अर्थ जो उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय चारों द्वारों के द्वारा व्याख्या की जाय। तभी उसका सही यथार्थ अर्थ संभव है। . . उपक्रम - वह है, जो अर्थ के अपने समीप करता है। आगम में जिन विषयों की चर्चा की गई है। उन सभी विषयों पर तुलनात्मक दृष्टि से चिन्तन करना, जिससे प्रबुद्ध पाठकों को यह परिज्ञात हो सके कि आगम साहित्य में अन्य स्थलों पर इन विषयों की चर्या किस रूप में की गई है और परवर्ती साहित्य में इन विषयों का विकास किस रूप में हुआ है आदि। निक्षेप - यह अनुयोग द्वार का दूसरा द्वार है। निक्षेप जैन दर्शन का एक पारिभाषिक शब्द है। इसके द्वारा पदार्थ का बोध होता है। यानी जो अनिर्णीत वस्तु का नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव से निर्णय कराये वह निक्षेप है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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