Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 6
________________ [5] और मिथ्याश्रुत की सूची भी दी गयी है और अन्त में स्पष्ट लिखा है- “सम्यक् श्रुत कहलाने वाले शास्त्र भी मिथ्यादृष्टि के हाथों में पड़कर मिथ्याबुद्धि से परिगृहीत होने के कारण मिथ्या श्रुत बन जाते हैं। इसके विपरीत मिथ्याश्रुत कहलाने वाले शास्त्र सम्यग्दृष्टि के हाथों में पड़कर सम्यक्त्व से परिगृहीत होने के कारण सम्यक् श्रुत बन जाते हैं। आगे इसी नंदी सूत्र श्रुत के अक्षरश्रुत और अनक्षरश्रुत, संज्ञीश्रुत और असंज्ञीश्रुत आदि चौदह भेद भी किये हैं। वर्तमान स्थानकवासी परम्परा में बत्तीस आगम मान्य है। उनका समय-समय पर विभिन्न रूप से वर्गीकरण किया गया है। सर्वप्रथम इन्हें अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य रूप में प्रतिष्ठापित किया है। अंगप्रविष्ट श्रुत में उन आगम साहित्य को लिया गया है जिनका निर्यहूण गणधरों द्वारा सूत्र में हुआ है। गणधरों द्वारा जिज्ञासा प्रस्तुत करने पर तीर्थंकरों द्वारा समाधान किया गया हो और अंगबाह्यश्रुत वह है जो स्थविरकृत हो अथवा गणधरों के जिज्ञासा प्रस्तुत किये बिना ही तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित हो । समवायाङ्ग और अनुयोग द्वार सूत्र में आगम साहित्य का केवल द्वादशांगी के रूप में निरूपण हुआ है। तीसरा वर्गीकरण विषय के हिसाब से चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग एवं धर्मकथानुयोग के रूप में हुआ है। इसके पश्चातवर्ती साहित्य में जो सबसे अर्वाचनीय है उसमें ग्यारह अंग, बारह उपांग, चार मूल, चार छेद सूत्र और बत्तीसवां आवश्यक सूत्र के रूप में बत्तीस आगमों का विभाजन किया गया है। प्रस्तुत अनुयोगद्वार सूत्र चार मूल सूत्रों के अन्तर्गत एक मूल सूत्र है। इसे मूल सूत्र में स्थापित करने का स्थविर भगवंतों का क्या लक्ष्य रहा ? इसके लिए समाधान दिया गया है कि आत्मोत्थान के मूल साधन प्रभु ने सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप बतलाये हैं। उत्तराध्ययन सूत्र सम्यग्दर्शन, चारित्र और तप का प्रतीक है, जबकि दशवैकालिक चारित्र और तप का । अनुयोगद्वार सूत्र दर्शन और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है और नंदी सूत्र पांच ज्ञान का । इस कारण से अनुयोग द्वार की गणना मूल सूत्रों में की गई है। सम्यग् दर्शन के अभाव में ज्ञान, चारित्र और तप तीनों क्रमशः मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र और बालतप माने गये हैं। जहाँ सम्यग् ज्ञान, सम्यक् चारित्र और तप होगा, वहाँ नियमा सम्यग् दर्शन होगा ही सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की उत्कृष्ट आराधना के लिये क्रमशः अनुयोगद्वार सूत्र, नंदी सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र और दशवैकालिक सूत्र का अध्ययन आवश्यक माना गया है। चार मूल सूत्रों में नंदी सूत्र के बाद अनुयोगद्वार सूत्र का नम्बर आता है। अनुयोग शब्द Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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