Book Title: Anuyogdwar Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 5
________________ आने लग जाता है। उसी प्रकार आगम के आलोक में रमण करने पर साधक को अपने चित्त की समस्त सद् और असद् प्रवृत्तियों का दिग्दर्शन हो जाता है। इसके अध्ययन करने से अपने अन्तरंग में रहे, सभी प्रसुप्त अवगुण स्पष्ट झलकने लगते हैं। इसके साथ ही आगम आत्मा को परमात्मपद की ओर प्रेरित करने वाला परमगुरु है। आगम ज्ञान से ही मन और इन्द्रियाँ समाहित रहती है। आगम ज्ञान से आत्मा में अद्भुत शक्ति, स्फूर्ति एवं अप्रमत्तता जागृत होती है। इसके अध्ययन से क्लेश, मन की मलिनता, वैभाविक स्थिति का सहज ही शमन हो जाता, चित्त में. एकाग्रता का वास होता है। श्रुतज्ञान से आत्मा स्वयं धर्म में स्थिर होता है और अपने सम्पर्क में आने वालों को भी धर्म में स्थिर कर सकता है। इसके निरन्तर अध्ययन से वीतरागभाव जागृत होता है। दशवैकालिक सूत्र के नौवें अध्ययन के चौथे उद्देशक में श्रुतज्ञान को चित्त समाधि का मुख्य कारण कहा है। भगवती सूत्र शतक ८ उद्देशक १० में उत्कृष्ट ज्ञान आराधना वाले साधक को या तो उसी भव में सिद्ध बुद्ध मुक्त होना बतलाया है या फिर दूसरे भव का अतिक्रमण नहीं करना बतलाया है अर्थात् कल्पदेवलोक या कल्पातीत देवलोक का एक भव ग्रहण करने दूसरे भव में महाविदेह क्षेत्र या अन्यत्र मनुष्य भव प्राप्त करके उसी भव में नियमेन सिद्ध हो जाता है। इस प्रकार आगम (श्रुत) ज्ञान वह दिव्य महाऔषधि है जो जीव की आधि, व्याधि, उपाधि को मिटा कर भव रोग को सदा के लिए नष्ट कर देती है। इस महान् औषधि का निर्माण किसी सामान्य व्यक्ति के द्वारा नहीं परन्तु सर्वज्ञ सर्वदर्शी वीतराग प्रभु द्वारा किया है। जिसका सेवन कर अनेक भव्य आत्माओं ने अपना भवभ्रमण रोग सदा सदा के लिए समाप्त कर लिया। ठाणाङ्ग सूत्र में श्रुत धर्म भी दो प्रकार का बतलाया गया है - "सुयधम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - सुत्त सुयधम्मे चेव अत्थ सुयधम्मे चेव" यानी सूत्र रूप धर्म और अर्थ रूप धर्म। अनुयोग द्वार सूत्र में श्रुत के द्रव्यश्रुत और भावश्रुत दो प्रकार बतलाये हैं। जो पत्र अथवा पुस्तक पर लिखा हुआ है वह "द्रव्यश्रुत" है और जिसे पढ़ने पर साधक उपयोग युक्त होता है वह "भावश्रुत" है। श्रुतज्ञान का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए बतलाया गया है कि जिस प्रकार धागे में पिरोई हुई सुई गुम होने पर पुनः मिल जाती है, क्योंकि धागा उसके साथ है, उसी प्रकार सूत्रज्ञान रूपी धागे से जुड़ा हुआ व्यक्ति आत्मज्ञान से वंचित नहीं होता। आत्मज्ञान युक्त होने से वह संसार में परिभ्रमण नहीं करता। नंदी सूत्र में श्रुत के दो प्रकार बताये हैं - सम्यक्श्रुत और मिथ्याश्रुत, वहां सम्यक्श्रुत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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