Book Title: Anusandhan 2013 03 SrNo 60 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 6
________________ ज होय छे. आवो शोधक ज सार्वत्रिक अने सार्वदिक विश्वास प्राप्त करी शके छे. अने संशोधनना क्षेत्रमा रळी लेवा लायक वानां बे ज छे : सत्यनिष्ठा अने विश्वास. आ बे रळवानी फावट आवे तेना नामे पछी सेंकडो पुस्तको / ग्रन्थो न होय तो तेथी कांई फरक पडतो नथी. एवं पण नथी समजवानुं के सुसज्ज के सक्षम गणाता शोधकनी पण बधी वातो सत्य ज होय. तेमणे सिद्ध करी आपेली वात पण, बीजा-विलक्षण बुद्धि प्रतिभा, दृष्टि के क्षयोपशम धरावता अभ्यासीनी दृष्टिए खोटी ठरी शके. परंतु तेवा शोधकोनी गलत वातने गलत पुरवार करवा माटे, विरोध, पूर्वग्रह अने मताग्रहथी भरेला मानसनी नहि, पण मौलिक उन्मेष धरावती स्वस्थ प्रज्ञानी आवश्यकता होय छे. विरोध द्वारा घोंघाट के कोलाहल नीपजावी शकाय, पण ऊहापोह नहि. शोधनिष्ठा माटे अने शोधयात्राना सातत्यने माटे ऊहापोह आवश्यक जणस गणाय, कोलाहल नहि. अने छेल्ली वात : विरोध द्वारा कोईने, थोडा लोको समक्ष अने थोडाक वखत पूरता, खोटा पाडी शकाय छे, पण पोताने साचा के यथार्थ पुरवार करी शकाता नथी, आटलुं, शोधयात्राए नीकळनारा सज्जनोने समजाई जर्बु अति अगत्यनुं छे. - शी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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