Book Title: Anusandhan 2013 03 SrNo 60
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 13
________________ उपा. अमरचन्द्र लखायेलां छे. आ स्तोत्रोना हांसियामां एक स्थळे 'जीर्णलेखः' अवी नोंध छे. पत्रमा ५-६ जग्याओ टिप्पण पण आपवामां आवी छे. आ पत्र तेमज पत्र क्रमांक ५, ६, १०, ११, १२, १४ १५, १६ अने १७ना Scroll मुनिराज श्रीधुरन्धर विजयजी म. पासेथी अमने मळ्या छे. आ बदल तेओनो जेटलो आभार मानी तेटलो ओछो छे. __ (पत्र ५-६-७) __ आ त्रणे पत्रो भट्टारक श्रीविजयदेवसूरिजीने उद्देशीने लखाया छे. पत्रोनी तालिका - पत्र पत्र लखनार क्यां लखायो ? देवसूरिजी क्यां बिराजमान हता? ५ पं. लावण्यविजय योधपुर(-जोधपुर) राजनगर (-अमदावाद) भुज सिंहरोधिका (-शिरोही (?)) ७ उपा. धनविजय राजपुर सूर्यपुर (-सुरत) आमां प्रथम बे पत्रोमा भट्टारक श्रीविजयसिंहसूरिजी- पण नाम छे. आ बंने पत्रो कया वर्षमां लखाया ते जणाव्युं नथी. पण सं. १६८५मां बन्ने आचार्यो सिरोहीमां चातुर्मास हता तेवी जैन परम्परानो इतिहास भाग-३मां नोंध छे. तेथी ते वर्षमां बीजो पत्र (पत्र-६) लखायो होय तेम बने. उपा. धनविजयजीओ सूरत मोकलेलो त्रीजो पत्र सं. १७०४मां का.व.५मे लखायो छे. आ वर्षमां देवसूरिजी म. ईडर चोमासुं रह्या हता तेवो उल्लेख जै.प.इ.-भाग ३मां छे. तेथी आ विगत वधु चकासणीलायक जणाय छे. त्रणे पत्रो काव्यकला, कल्पनावैभव, शब्दवैविध्य व.ने लीधे आस्वादनीय बन्या छे. भट्टारक विजयदेवसूरिजी केवा गुणवन्त अने आदरपात्र हशे ते आ पत्रोमां तेमनी स्तुति जोतां बराबर समजाय छे. एक स्तुतिपद्य नमूना खातर निरीक्षितेऽस्मिन् गणनातिरेक-प्रोद्भूतसद्भूतगुणाम्बुराशौ । सदोदयान् दृष्टिपथं प्रपन्नान्, मन्यामहे सम्प्रति पूर्वसूरीन् ॥ ___- पत्र ५, श्लोक ६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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