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पत्रमा क्यांय वर्षनो उल्लेख नथी. आ पत्र पाटणना हेमचन्द्राचार्यज्ञानभण्डारमां डा. १९७ क्र. ८००९ मां छे. सम्भवत: कर्ताना स्वहस्ताक्षरनो ते पत्र छे. ३ पत्रोना पत्रनी झेरोक्स नकल, वर्षो अगाउ, पाटणथी ज मेळवेली, तेनो आमां उपयोग कर्यो छे. ते पत्रनी नकल आपवा माटे भण्डारना कार्यवाहकोनो आभार मा छु.
पत्र काव्यात्मक गद्य-पद्यमां छे. गद्यांश कादम्बरी अने तिलकमञ्जरीनी स्मृति करावे छे. अदूषित विदग्धता केवी होय ते आ पत्र वांचवाथी समजाय तेम छे. विनयविजयजी, विपुल साहित्य अने तेमनी विद्वत्ता जाणीतां छे ज, पण आ पत्रमा तेमनी जे कविप्रतिभा प्रगटे छे, ते तो अद्भुत छे.
प्रारम्भमां प्रथमाथी सप्तमी विभक्तिना 'यद्' शब्दनां एकवचनमां रूपो थकी महावीरस्तुति करी छे, अने पछी ते ज रीते सात विभक्तिओथी ७ पद्यो आलेख्यां छे; ते केवां मनोहारि छे ! ते पछी प्रथम गद्यखण्डो वडे ७ विभक्तिमां अने पछी ८ पद्यो वडे सात विभक्तिमां ज द्वीपबन्दरनुं सोहामणुं वर्णन थयु छे. ते पछी रामनगरना संक्षिप्त वर्णनपूर्वक लेखक धर्मकार्योनो वृत्तान्त रजू करे छे २ गद्यखण्डोमां. तेमां 'सुबोधिका'ना वांचननो उल्लेख ध्यानार्ह छे. _ पछीना गद्यखण्डोमां ७ विभक्तिमां गुरुवर्णन छे, अने पछी पद्योमां पण ते ज वर्णन छे. पद्य १४-१५मां पत्रोत्तरनी विनति, गुरुनिश्रामा रहेला साधुओनुं नामस्मरण, तेमज पोतानी निश्राए वर्तता मुनिओना नामोल्लेख साथे पत्र समाप्त थयो छे. एक अनुपम रचना !
_ (पत्र १०) उपलब्ध पत्रसाहित्यमां सौथी वधु पत्रो आ. श्रीविजयप्रभसूरिजी पर लखेला मळे छे. हवेना आ आठे पत्रो भट्टारक श्रीविजयप्रभसूरिजीने उद्देशीने ज लखायेला छे. पत्रोनी तालिका - पत्र पत्र लखनार क्याथी लखायो ? - प्रभसूरिजी क्यां
बिराजमान ? १० उदयविजयजी सिद्धपुर
जीर्णदुर्ग (-जूनागढ) ११ पं. नयविजयजी भवाल
देवकपत्तन
क्र.
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