Book Title: Anusandhan 2013 03 SrNo 60 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 8
________________ लागे छे. उपलब्ध पत्रोमां सर्वश्रेष्ठ अने वळी सर्वप्रथम कहेवाय तेवो पत्र 'त्रिदशतरङ्गिणी' छे. आ. मुनिसुन्दरसूरिए पोताना गुरुने लखेल १०८ हाथ जेटला प्रलम्ब आ विज्ञप्तिपत्रना बे अंशो उपलब्ध तथा प्रकाशित छे; एक अंश अद्यावधि अलभ्य - अप्रकट छे. आ काव्यात्मक पत्रमां कवि - लेखकनी काव्यप्रतिभा तेना सर्वोच्च शिखरे आरूढ जोवा मळे छे. 6 आवो ज बीजो पत्र छे विज्ञप्तित्रिवेणी. १५मा सैकामां वाचक जयसागर द्वारा लखायेल, सहस्राधिक श्लोक - प्रमाण अने ३ वेणिमां विभक्त आ पत्र पण पत्र - साहित्यक्षेत्रनुं एक अनुपम घरेणुं छे. आ स्वतन्त्र पुस्तकरूपे प्रकाशित छे. आ उपरांत, बीजां पण अनेक विज्ञप्तिपत्रात्मक खण्डकाव्यो के लघुकाव्यो उपलब्ध छे, जेनुं संकलन - सम्पादन मुनि जिनविजयजी द्वारा 'विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रह' नामक ग्रन्थमां थयुं छे. आ बन्ने पुस्तकोनी प्रस्तावनाना लेखोमां विज्ञप्तिपत्र, तेनुं स्वरूप, तेनी विशेषताओ, तेनो विषय, तेमांनुं काव्यतत्त्व इत्यादि विषे घणीबधी ज्ञानवर्धक जाणकारीनुं आलेखन थयुं छे. डॉ. हीरानन्द शास्त्रीए तैयार करेल एक ग्रन्थ 'एन्श्यन्ट विज्ञप्तिपत्रास' मां पण, अंग्रेजी भाषामा विज्ञप्तिपत्र विषे विशद वातो आलेखाई छे, अने तेमां केटलांक सचित्र पत्रोनां चित्रोनी रंगीन तेमज श्वेत-श्याम (B / W.) छबीओ पण आपवामां आवी छे. आ सिवाय पण, जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास (ही. र. कापडिया) जेवा सन्दर्भग्रन्थोमां पण विज्ञप्तिपत्रो विषे माहिती नोंधाई छे. आम, अनेक विज्ञप्तिपत्रोनुं प्रकाशन थयुं छे. कोई कोई पत्रो विविध सामयिकोमां पण प्रकाशित थया होय ज. 'अनुसन्धान' ना अंकोमां पण नवेक नाना-मोटा पत्रो प्रगट थया छे. अने छतां, अनेक ज्ञानभण्डारोमां अने पुस्तकसंग्रहोमां हजी पण बहोळी संख्यामां, नाना-मोटा तेमज संस्कृत तेमज गुजराती भाषामय, पत्रो उपलब्ध थाय छे, जे हजी प्रकाशित थया नथी. आवा पत्रो मेळवीने तेनुं प्रकाशन करवुं, अने ते माटे 'अनुसन्धान' नो विज्ञप्तिपत्र - विशेषाङ्क एकथी वधु थाय तेटला - खण्डोमां प्रगट करवो, एवो संकल्प गत वर्षे चित्तमां जागेलो, जे खास्सा विलम्ब पछी हवे साकार बने छे तेनो आनन्द छे. — आ प्रथम खण्डमां सत्तर संस्कृत पत्रो आपवामां आवेल छे, ते पत्रोनो सारभूत संक्षिप्त परिचय आ प्रमाणे छे : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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