Book Title: Anusandhan 2013 03 SrNo 60 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 9
________________ (पत्र १) आ अंकमां मुद्रित पत्रो पैकी प्रथम पत्र अवरङ्गाबादमां (औरंगाबाद, महाराष्ट्र) बिराजमान तपगच्छपति श्रीविजयदेवसूरि उपर, सरोतरा नगरे रहेला तेमना पट्टशिष्य श्रीविजयसिंहसूरि द्वारा लखवामां आवेल पत्र छे. ३११ श्लोकोमा पथरायेल आ पत्र एक लघुकाव्यसमान छे, अने तेनी काव्य-प्रौढि तेमज अलङ्कारमण्डित सशक्त रचनापद्धति, रचनाकार प्रत्ये अहोभाव उपजावे तेवी छे. पत्रमा अनेक बन्धचित्र-काव्यो छे, जे स्वाभाविकपणे ज क्लिष्ट पद्यरूप होवा छतां कविनी प्रतिभाना सामर्थ्यनां परिचायक छे. आ पत्र क्यांना भण्डारनो छे, तेनुं स्वरूप शुं छे, ते कशी विगत अत्रे आपवानुं शक्य नथी. केमके आ आखो पत्र विद्वन्मूर्धन्य अने कविवर एवा मुनि श्रीधुरन्धरविजयजीए, वर्षो अगाउ, पोतानी नोंधपोथीमां ऊतारी-लखी राखेल छे, तेना उपरथी अत्रे तेनुं शक्य सम्पादन करीने मूकेल छे. आ पुनर्लेखननुं काम मुनि श्रीकल्याणकीर्तिविजयजीए कयुं छे. पत्रनो प्रारम्भ जिनस्मरणथी (१-३) थयो छे. ४ थी ७० पद्योमां वर्धमान जिननी स्तुति थई छे. ७१-१२६ मां औरङ्गाबाद- नगर-वर्णन छे. १२७-३१ सरोतरा गामनुं वर्णन थयुं छे. १३२-३४मां पत्र पाठवनारनुं वर्णन तथा नामनिर्देश छे. "विजयसिंहशिशुः" ए पद (१३४) विजयसिंह नामक शिशु- एवो अर्थ धरावे छे; विजयसिंहनो शिशु (शिष्य) एवो नहि. १३५५०मां सरोतरा-स्थाने थयेल पर्युषणपर्वसहितनां धर्मकार्योनुं वर्णन छे, तेमां १२ दिनना अमारिप्रवर्तननो पण स्पष्ट उल्लेख (१४६) जोवा मळे छे. १५१-२७४ आटलां पद्योमा गुरुराज श्रीविजयदेवसूरिनुं अद्भुत वर्णन छे. चरणवन्दना (२७५), पत्रोत्तर माटेनी विज्ञप्ति (२७६-७७), गुरुवर्यनी निश्रामां वर्तता मुनिवरोने तथा साध्वीओने तेमनां नाम-वर्णन साथे अनुवन्दना-निवेदना (२७८९६), तथा पोतानी साथेना साधुओनां नामो तेमज डाभेला, प्रह्लादनपुर, गोला, राजपुर, दन्ता (दांता) आदि समीपनां गामो-क्षेत्रोमां वर्तता मुनिवरोनां नामोतेमनी वन्दनाना निवेदनपूर्वक (२९७-३०६) छे. ३०७मां पद्यमां संघनी गुरुवन्दनानुं निवेदन छे. ३०८-१० मा लेख(पत्र)रूपी राजहंसनुं वर्णन करवा साथे तेनो जन्म (रचना) वि.सं. १६९९ ना दीपालिकापर्वे थयानो निर्देश छे. अन्तिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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