Book Title: Anusandhan 2013 03 SrNo 60
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 5
________________ निवेदन संशोधन एक यात्रा छे, शोधयात्रा अथवा ज्ञानयात्रा; व्यवसाय नहि; अने कशुक रळी लेवानो धंधो तो नहीं ज. जैन परिभाषा प्रमाणे आपणी बुद्धि कर्मो वडे आवृत-ढंकायेली होय छे. ए आवरणरूप कर्मोनुं आघापाछा थर्बु तेने 'क्षयोपशम' एवं नाम अपाय छे. ए क्षयोपशम जेटलो के जेटली हदे थाय अर्थात् ए कर्मावरणो जेटले अंशे आघापाछां थाय ते ते अंशे आपणने ज्ञाननो अथवा प्रतिभानो उन्मेष लाधे, अने ते उन्मेषना प्रकाशमां आपणने, अन्यने न देखातुं के न देखायुं होय तेवू जोवाजाणवा मळे. आ प्रक्रियाने कारणे, परम्पराथी चाल्या आवता पाठ अथवा धारणा अथवा अर्थघटन इत्यादिमां अणकल्प्यो बदलाव आवी शके छे, अने रूढ मान्यता, स्वीकृत पाठ अने मान्य अर्थघटनो - बधुं खोटुं ठरी जतां तेने स्थाने नवी धारणा, पाठ, अर्थ प्रस्थापित थई शके छे; आ छे संशोधननी यात्रा. आमां कशाकने असत्य ठराववानी गणतरी नथी होती, परंतु सत्यनी गवेषणानो अथवा सम्भवित सत्यनी वधुमां वधु नजीक पहोंचवानो ज आशय होय छे. ___पण, आ यात्रा ज्यारे स्पर्धात्मक व्यवसाय- रूप ग्रही ले छे, त्यारे कार्यो तो घणां थवा लागे छे; सम्पादनो, प्रकाशनो अने प्रतिपादनोनी मोटी वणझार नीकळे छे; परंतु तेमां प्राप्ति अथवा उपलब्धि-तत्त्वनी अने तथ्यनी, बहु अल्प मात्रामा ज होय छे. आवो व्यवसाय नामना रळी आपे, धन वगेरे भौतिक बाबतो पण संपडावी आपे, मान-पान पण मेळवी आपे; पण तत्त्व-तथ्य सुधीनी आपणी, शोधकनी तेमज अभ्यासी जननी, पहोंच वधारी नहि शके; आपणी मतिने वधु परिमार्जित अने वधु संवर्धित न करी शके. ____ आजकाल, चोतरफ, ढगलाबंध थतां रूपाळां अने सोहामणां प्रकाशनोसम्पादनोना विश्वमा अलपझलप डोकियुं करवा जतां उपर लख्युं तेवू लाग्यु अलबत्त, संख्या, फेलावो अने लोकप्रियता ए कांई खराब के तिरस्कारपात्र / उपेक्षापात्र वानां नथी ज. परंतु तात्त्विक संशोधन/प्रतिपादननी सीधी निसबत शोधक / प्रतिपादकनी सज्जता, शोधनिष्ठा अने सत्यप्राप्ति माटेनी मथामण साथे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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