Book Title: Anusandhan 2012 03 SrNo 58
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 5
________________ आ तेजोलेश्या. (चित्रमा सौथी उपर पीळा पहेरणवाळो जण). पांचमाए ना पाडी के एना करतां जोईए तेटलां जाम्बू ज चूंटी लईए. आ पद्मलेश्या. (चित्रमा झाड पर डाबे श्वेत कपडांवाळो माणस). छेवटे छठ्ठाए का : शा माटे कांई पण तोडवू ? आपमेळे नीचे घणां जाम्बू पडे ज छे, ए ज वीणी लईए तो आपणुं काम सरी जाय ! आ शुक्ल लेश्या. (चित्रमा साव नीचे जमणे श्वेत कपडांमां वांको वळीने फळ वीणतो जण). आ दृष्टान्तने वर्णवतां पोथी चित्रो उपलब्ध छे. जैन मन्दिरोमां, उपाश्रयोमां तेनां भींतचित्रो पण मळे. आवरण-१ पर मूकेल चित्र ते Painting नहि, परन्तु Inlay-work छे. मूल्यवान विविधरंगी पत्थरोने कलात्मक रीते कोतरीने उपसाववामां आवेल आ पट्ट कोल्हापुरना लक्ष्मीपुरीस्थित जैन देरासरनी दीवाल पर जोवा मळे छे. वृक्ष, पहाड, वनराजि, पाणी, पक्षीओ, मनुष्यो - आ बधांने एटली तो वास्तविक रीते कंडारवामां आवेल छे के तेने जोतां ज आपणी सौन्दर्यदृष्टि विस्फारित थया विना रहे नहि. आवरण - ४ पर पण ते ज चित्र मूकेल छे. दायकाओ पूर्वे, अंग्रेजोना वखतमां, भारतमां लीथो प्रिन्टिंगनो युग हशे त्यारे, कोई नोटबुकना (Excersize Book) उपरणा पर छपायेल छ लेश्यानुं आ चित्र छे. तेना मथाळे लखेल ANDREWS तेनी उत्पादक कम्पनीनुं नाम होवू जोईए. ते वखते लोकोनी रुचि तथा संस्कारिता घडवा माटे पुरातन सामग्रीनो केवो सरस विनियोग थतो हशे?

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