Book Title: Anusandhan 2012 03 SrNo 58
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ फेब्रुआरी - २०१२ नवग्रह-स्तम्भनकपार्श्वदेवस्तवः - सं. अमृत पटेल नवग्रह-स्तम्भनकपार्श्वदेवस्तव अहीं प्रस्तुत लघुस्तोत्र छे. आ भक्ति कृतिमां विविध छन्दोबद्ध १२ पद्यो छे. तेमां अज्ञात भक्त कविओ एक एक विशेषणोना बे बे अर्थो द्वारा स्तम्भनपार्श्वनाथ तथा तत्संगत सूर्य आदि नवग्रहोनी पण स्तुति करी छे. भाषानी प्रासादिकता, भावाभिव्यक्ति अने शैलीने लक्षमां लेता प्रस्तुत स्तुति १३मा शतकनी रचना होवानुं अनुमान थाय छे. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावादना हस्तप्रतसंग्रहमां - जम्बूकविकृत 'जिनशतक' काव्यनी प्रत, ७०मुं फुटकर पत्र छे. तेमां प्रायः ७५ अक्षरनी अन्तिम आठ पंक्तिओमां प्रस्तुत स्तोत्र झीणा पण सुन्दर/सुवाच्य अक्षरोथी लखायेलुं छे. पञ्चपाठ अने मध्यफुल्लिक-मण्डित प्रस्तुत प्रत प्रायः १६मा शतकमां लखाई हशे. प्रस्तुत सम्पादनमा अन्य प्रतनी सहाय प्राप्त थई नथी. आथी मुख्य मुख्य क्षतिओनी विगतवार नोंध आपवी इष्ट लागे छे. (१) बीजा पद्यमां 'गोभिर्जनानामपि विस्तृतप्रमोदं' पद हतुं तेमां इन्द्रवज्रा वृत्तनुं लक्षण घटतुं न हतुं. आथी 'गोभिर्जनानां विसृतप्रमोदं' सुधारीने छन्दोभङ्ग निवार्यो छे. (२) तृतीय पद्यमां उपजाति वृत्त छे. प्रथम पादमां - ‘डष्टम्यान्वितो न जननोत्सवेन' पंक्ति छे. तेमां छन्दोलक्षण प्रमाणे पांचमो स्वर लघु होवाथी छन्दोभङ्ग थाय छे तथा 'अष्टमीथी युक्त, अने जन्मोत्सवथी युक्त नहीं' एम अर्थ पण संगत नथी. 'एटले'-ष्टम्यां वितेने जननोत्सवेन' आवी पदशुद्धि करी छे जेथी छन्द अने अर्थ बे संगत थया छे. (३) चतुर्थ पद्य पण उपजातिवृत्तमां छे. प्रथम पाद 'दृष्ट्या प्रयात्यतुलं फलं यः' मां एक असर खूटे छे. अने 'दृष्टिथी अतुल फलने पामो आ अर्थ पण सन्दर्भ जोता संगत नथी. आथी 'दृष्ट्या प्रयच्छत्वतुलं फलं यः' आवं पदसंशोधन कर्यु छे. जेथी 'दृष्टिथी अतुलफलने आपो.' एवो अर्थ संगत थाय

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 175