Book Title: Anusandhan 2012 03 SrNo 58
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ अनुसन्धान-५८ छे. अने छन्दनुं बंधारण जळवाई रहे छे. ___ (४) १२मा पद्यमां वंशस्थ वृत्त छे. प्रथम पादमां 'इति स्तुतः स्तम्भन सपुरस्थः' - मां १३ वर्णो छे. त्यां 'सत्पुरस्थितः' संशोधन कर्यु छे. जेथी छन्दोभङ्ग तो दूर थयो ज, साथोसाथ बीजा पादमां 'परामितः' पद साथे अन्त्यानुप्रास पण जळवाई जशे. आम आ स्तोत्रमा चार महत्त्वनां संशोधनो छे. (५) श्लेष अलङ्कारनां बळथी उपमेयनां विशेषणो उपमाननां विशेषण तरीके पण घटावाय छे. जेथी काव्यमां चमत्कृति सर्जाय छे. अहीं पण पार्श्वनाथ भगवाननां विशेषणोने सूर्य वगेरे दरेक ग्रहोनां विशेषण तरीके पण घटावायां छे. श्लेषनी करामतथी उभयत्र अर्थसम्बन्ध धरावतां विशेषणोना बे बे अर्थो समजावतुं संस्कृतमां निबद्ध टिप्पनक मूळ कृतिनी साथे लखायेल छे. जे टांचण रूपे छे एटले खूब ज अस्पष्ट अने संक्षिप्त छे. तो अमुक अर्थो घटावाया नथी. आथी में तेमां सुधारा-वधारा कर्या छे. त्यार बाद भावानुवाद स्तोत्रमां बे अर्थो छे. तेथी 'गीवार्णगिरानी गरिमाने गूर्जरा गिरा'मां माणी शकाय' ए हेतुथी आप्या छे. (६) पार्श्वः श्रियेऽस्तु भास्वान्'थी शरु थतुं, अन्य एक 'नवग्रहस्तवगर्भ पार्श्वस्तव' (१० पद्य) छे. तेना कर्ता सोमसुन्दरसूरि शिष्य रत्नशेखरसूरि छे. तेमां पण अज्ञातकर्तृतक अवचूरि द्वारा श्लेषथी नवग्रह तथा पार्श्वनाथनी स्तुति करवामां आवी छे– ते (सं. मुनि श्री चतुर विजयजी.-सन् १९२८ निर्णयसागर प्रेस)- जैन स्तोत्र समुच्चय भा. २, पृ. ७१-७२). नवग्रह-स्तम्भनकपार्श्वदेवस्तवः जीयाज्जगच्चक्षुरपास्तदोषः छायान्वितो धामनिधिः सभद्रः । नालीकबन्धुर्जडिमापहारी श्रीस्तम्भनस्थः प्रभुपार्श्वनाथः ॥१॥ टि :- अपास्ताः दूरीकृताः मोहादयोऽष्टादश दोषाः येन सः, नष्टदशाधिकाष्ट दोषो जिनः । अपास्ता दूरीकृता दोषा रात्रिर्येन सः निशानाशकृत् प्रभाकरः रविः । छाया धर्मोपदेशसदनस्य समवसरणस्य शोभा- "लक्ष्मीच्छाया शोभायां" (है. ना. १५१२), तया अन्वितः समवसरणे शोभायमानः तीर्थङ्करः । सूर्योऽपि

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 175