Book Title: Anusandhan 2010 06 SrNo 51
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 11
________________ जून २०१० अनुसन्धान ५०(१)मां छपायेली बे कृति विशे ढाळ १ १ १ १ २ २ - गाथा १३ १८ २१ २२ १७ ३३ - (१) तेजबाईव्रतग्रहणसज्झाय मुद्र घणी आरवडी - भण भण तरणि भण मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय कालादि प्रकरणे जयणा ढा. २ गा. ३१ विहवापगरणि ? काजि जयणा विवाह प्रकरणे जयणा सम्भवितपाठ धणी आखड मण ढा. १ गा. १७मां ‘कुटि' ने बदले, नवविध परिग्रहनी गणतरी चालु होवाथी 'कुपि ' (कुप्य = सोनुं-रूपुं सिवायनी धातुओ) होवुं सम्भवित छे. अने तो पाठ आम पडे मण मण गणि कुपि मोकली मण सइ च्यार. (अत्रे कृतिमां 'भणसइ' अने शब्दकोशमां 'माणसइ' छपायुं छे.) अर्थ : चारसो मण धातु राखवानी छूट. कृतिमां ज्यां प्रश्नचिह्नो करायां छे त्यां सम्भवित अर्थ - ढा. १ गा. २३ सजनादिक कारण उपदसी ? जयणा स्वजनादिक कारणे उपदेशेली जयणा. ढा. २ गा. १७ कालादि तगरणि जयणा ए ? ७ शब्दकोशमां जेनो अर्थ नथी दर्शावायो तेवा केटलाक शब्दो. ढा. २ गा. ९ संपुन सय्या = सम्पूर्ण शय्या ढा. २ गा. १७ राजक देवकई = राजा अने देव सम्बन्धित प्रसंगोए (अत्रे जा सम्बन्ध जोडवानो छे.)

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