Book Title: Anusandhan 2010 06 SrNo 51
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 9
________________ जून २०१० मत डोल.' कबीरना पदनी पंक्तिने लईने बांधवामां आवेलुं ए शीर्षक, घणुं घj सूचवी जाय तेवू हतुं. जेवू सर्जकनु, तेवू ज संशोधकर्नु पण कर्तव्य समजी शकाय. चित्तमा परम्परानो द्रोह के खण्डन करवानी मलिन वृत्ति न होय, नवं नवं, परन्तु प्रमाणभूत अने प्रमाणिक, शोधी काढीने परम्पराने शुद्ध तेम समृद्ध करवानी खेवना होय; आपणा संशोधनने प्रमाणपूर्वक कोई गलत पुरवार करे तो तेने वधावी लेवानी पूर्वग्रहमुक्त तत्परता होय; तो पछी संशोधके तेना आसन थकी विचलित थवानी लेश पण आवश्यकता रहेती नथी. संशोधन हमेशा गुंचवाडा दूर करे छे, जो आपणी मानसिकता पूर्वग्रहमुक्त विचारणा माटे सक्षम होय तो. - शी.

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