Book Title: Anusandhan 2008 03 SrNo 43
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 54
________________ अनुसन्धान ४३ ४९ लोकागच्छना श्रीपूज्योना त्रण भास __सं. मुनिसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयौ (१) बृहत् लोंकागच्छनी परम्परामां थयेल लखमसी (लिखमीचंद) ऋषिना शिष्य ऋषि गांगजीना काळधर्मनी घटनानो जैतिहासिक परिचय आपती प्रस्तुत कृति ऋषि शिवजीनी रचना छे. आ रचनामां पूज्य ऋषिना सामान्य गुणोनुं निरूपण कर्या बाद पूज्यश्रीना काळधर्म वखते हाजर रहेला बगसरा श्रीसंघना श्रावकोमांथी थोडाकनां नामनो उल्लेख कर्यो छे. तेमनी अन्तिमयात्रामां सूरत वगेरे अनेक स्थळना संघो .. हाजर रह्यानो उल्लेख (कडी ७) नोंधनीय छे. जाम अने जेठवा राजाओ तेमज झालावाडना राजवीओ तेमना प्रेमी होवानो उल्लेख (कडी ८) तिहासिक छे. ___पोरबन्दरमा तेमणे १७६७मां चातुर्मास कर्यु हतुं, त्यारे तेमनी प्रेरणाथी दरियानी खाडीमा माछीमारीनो निषेध त्यांना राणाले कर्यो हतो तेवो उल्लेख (कडी १२-१३) इतिहासनी दृष्टिले महत्त्वनो गणाय तेवो छे. तो ते ज प्रमाणे हालारना राजवी पासे पण तेमणे जीवदयानुं कार्य कराव्यु होवानो इशारो कडी-११मां प्राप्त थाय छे. आ उपरथी लोंकागच्छनो तथा गांगजी ऋषिनो प्रभाव राजा, प्रजा ओम उभय वर्गमां केटलो बधो हशे तेनो अंदाज मळे छे. पोरबन्दरना राजवीने बरडापति तरीके ओळखावेल छे (कडी १३) ते पण ध्यानपात्र बाबत लागे छे. गांगजी ऋषिनो स्वर्गवास बगसरामां थयेलो ते तो आ भास द्वारा स्पष्ट छे, पण तेनी तिथि तथा संवतनो उल्लेख आखी रचनामां क्यांय थयो नथी. १६मी कडीमां सं. १७७६ ने भा. सु. ५ ने भृगुवारनो उल्लेख छे, ते तो आ भासनी रचनानी तिथि होवानुं जणाय छे. हा, ओ ज दहाडे ऋषिनो काळधर्म थयो होय ने रचना पण ते ज दहाडे थई होय तो बनवा जोग जरूर छे, पण ते विशे चोक्कस कहेतुं शक्य नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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