Book Title: Anusandhan 2008 03 SrNo 43
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 87
________________ मार्च २००८ करावी हशे पछी पोतानी कायमी पध्धति प्रमाणे विभिन्न अभ्यासीओ द्वारा विविध प्रतिना पाठान्तरो तेमणे लेवडाव्या हशे त्यारबाद तेनुं सम्पादन स्वयं करीने, पाठनिर्धारणनुं काम तेओ हाथ पर लेवाना हशे, पण दरम्यानमां स्वास्थ्य आदि कारणवश ते काम रही गयुं होय तो ते बनवाजोग छे. परन्तु ते बाकी काम पूज्य जम्बूविजयजीना हाथे थाय तो तेमां औचित्य पण हतुं अने तेम थवुं आवश्यक पण हतुं. तेम थया विना ज आ प्रकाशन थयुं छे, जे स्वाध्याय पूरतुं खपमां आवी शके. ७. श्रीचतुःशरणप्रकीर्णक (बृहद्विवरण- संक्षिप्तवृत्ति- अवचूरि- बालावबोध- अनुवादादि समेतम् ) सं. आ. कीर्तियशसूरि; प्र सन्मार्ग प्रकाशन, अमदावाद; सं. २०६४, ई. २०० ८२ जैनागमोमां दश प्रकीर्णक ( पयन्ना) सूत्र नामे एक विभाग छे. तेमां चतु: शरणप्रकीर्णक एक आगम सूत्र छे, जे जैन सङ्घमां सैकाओथी प्रचलित छे, जेनो स्वाध्याय तथा आराधना जैन संघमां निरन्तर प्रवर्ततां होय छे. ते ज कारणे तेनां सम्पादन- प्रकाशनो पण अनेक थयां छे. तेमां महावीर जैन विद्यालयनी सम्पादित - समीक्षित वाचना ते अधिकृत गणाई छे. आ प्रकीर्णक पर अज्ञातकर्तृक विवरण तथा विविधकर्तृक लघु विवरणोनुं सङ्कलन आ प्रकाशनमां थयुं छे. आमांथी बृहद्विवरण अहीं प्रथम वार प्रकाशित थाय छे, अने अन्य विवरणो पूर्व - प्रकाशित छे, तेवुं जणाय छे. आमां मूकवामां आवेलां परिशिष्टोमां केटलांक उपयोगी छे, केटलांक बिनजरूरी अने पुस्तकनुं दळ वधारवानां आशयथी न मूकायां होय तेवुं लागे छे. प्रारम्भनां पृष्ठोमां 'प्रकीर्णक साहित्य, एक अध्ययन' शीर्षक धरावतो हिन्दी लेख (अतुलप्रसाद सिंह ) 'श्रमण' सामयिकमांथी उद्धृत करवामां आव्यो छे, ते अभ्यासु जनो माटे खास उपयोगी छे. आवा लेखोनुं परिशीलन ऊंडाणपूर्वक थाय तो सम्पादकोमां सम्पादननी सज्जता विकसी शके तेमज आग्रही सङ्कुचित विचारधारा, उदार वलणमां, कदाच, फेरवाई शके. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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