Book Title: Anusandhan 2008 03 SrNo 43
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 73
________________ ६८ मार्च २००८ हरसूर भणइ सुवचन साह देवसी तन । धन संघ प्रसन्नूजी । सहीए. (इति) श्री गुरु गीत ॥ ४ ॥ (४) चालि सही गुरु वंदीइ पहिरी नव सिणसार । गछनरेसर भेटीइ, जिम हुई जय जयकार ॥ वेगि वधावउ रे सुंदरी, मोती चउक पूरेवि . । सूरीसर जयकेसरी, अविहड भाव धरेवि ॥ १ ॥ वगि वधावउ रे । जई गुरु दीठा आपणा, चतुर पणइ चउसाल । सफल हूंया अम्ह लोयणा आज सफलिउ सुरसाल || २ ॥ वेगि. । स्वाद पणइ जिसी सेलडी, जाणे साकर दूध । कईहो मोहणवेलडी, वाणी अमी यति सूध ॥ ३ ॥ वेगि. । सरस सुकोमल सीयली, सुणतां सविहुं सुहाई। वाणी अम्ह गुरु केतली, ऊपम कहणि न जाइ ॥ ४ ॥ वेगि. । सारद ससिकर निरमलउ, खीरोदधि सम वान । दीपइ दहदिसि ऊजलु, जगि जस मेरु समान ॥ ५ ॥ वेगि. । जंगम गोयम गणहरु, सीलिई जंबुकुमार । सोहगवई वरमुणीसरु, विद्या वइरकुमार ॥ ६ ॥ वेगि. । जे गुण गाई गुरु तणा, आणी हृदय विवेक । पातक जाई तेह तणां, पामई भोग अनेक ॥ ७ ॥ वेगि. । इति श्री पूज्य भास प्राकृत भारती अकादमी १३-ओ, मेन मालवीयनगर, जयपुर-३०२०१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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