Book Title: Anusandhan 2008 03 SrNo 43
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 69
________________ मार्च २००८ देवेन्द्रसिंहसूरि धर्मप्रभसूरि सिंहतिलकसूरि महेन्द्रप्रभसूरि मेरुतुङ्गसूरि जयकीर्तिसूरि जयकेसरीसूरि इस प्रकार आर्यरक्षितसूरि की परम्परा में बारहवें पाट पर. इनका स्थान पाया जाता है। श्री जयकेसरीसूरि के सम्बन्ध में प्रयोजक पार्श्व ने अञ्चलगच्छ दिग्दर्शन नामक पुस्तक में पृष्ठ २६७ से २९८ पर विस्तार से प्रकाश डाला है। इसी पुस्तक के आधार पर प्रमुख-प्रमुख घटनाओं का यहाँ उल्लेख कर रहे हैं। इनका जन्म पाञ्चाल देशान्तर्गत थाना नगर में विक्रम संवत् १४६१ में हआ । इनके पिता श्रीपाल के वंशज श्रेष्ठि देवसी थे और माता का नाम लाखणदे था । किसी पट्टावली में जन्म संवत १४६१ प्राप्त होता है तो किसी में १४६९ । इनका जन्मनाम धनराज था । माता द्वारा केसरीसिंह का स्वप्न देखने के कारण दूसरा नाम केसरी भी था । संवत १४७५ में जयकीर्तिसूरि के पास आपने दीक्षा ग्रहण की और दीक्षा नाम जयकेसरी रखा गया। संवत १४९४ में जयकीर्तिसूरि ने आपको आचार्य पद प्रदान कर जयकेसरीसूरि नाम रखा । भावसागरसूरि के मतानुसार चांपानेर नरेश गङ्गदास के आग्रह से इनको आचार्य पदवी दी गई थी। जयकेसरीसूरि भास में रंजण गंग नरिन्द प्राप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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