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मार्च २००८
सुमति गुपति रमणी रमई वली जे दमई रे इंद्री । मुनिताज काज सरई दरिसन थकां गुर आपई रे शिवपुर नऊ राज
॥ च. ३ ॥ दन्ति पन्ति हीरे जड़ी सोवन घडी रे विचइ रुड़ी रेख ।। पेखि सखि मनि उलसई कमलाकर रे जिम सूरज देखी ॥ च. ४ ॥ सोभागी मुझ मलउ सखि तउ टलउ रे भवसागर फेर । सिद्धिविजय कहई तां तपउ गुरु माहरु रे जिहां महियल मेर ॥च. ५ ॥ मुनिचंदउ रे विजयदेवसुरीन्द ॥
इति श्री विजयदेवसूरीश्वर भास समास
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