Book Title: Anupeha
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 10
________________ स्वागत-वचन बौध वज्रयानी-सहजयानी सिद्धों की जो लोकाभिमुख अध्यात्मवादी साहित्य-रचना की प्रवृत्ति अपभ्रंश भाषा में सातवींआठवीं शताब्दी से चली उससे प्रेरित हो कर जैन परंपरा में भी 'परमात्म-प्रकाश' आदि कई दोहाबद्ध रचनाओं का निर्माण हुआ। लौकिक उपदेश के लिये की गई ऐसी शैली की धार्मिक रचनाएं उत्तरकालीन उपभ्रंश और प्रारंभिक प्रादेशिक भाषाओं में होती रहीं। इस विषय में शोध-कार्य बहुत कम हुआ है। एकाध अशुद्ध हस्तप्रत के आधार पर पाठ तैयार करने के और ठीक अर्थघटन के काम में कई कठिनाइयां रहती हैं । डा. प्रीतम सिंघवी ने इस शोधक्षेत्र में उत्साह के साथ पदार्पण किया है, उसके लिये मेरा धन्यवाद और आशीर्वाद । ह. भायाणी अहमदाबाद १९९८

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