Book Title: Anupeha
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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जोई जोऐं जोइ, जो जोइज्जिइ सो जु तुहुँ । अण्णु ण विइयउ कोइ, भणइ जोइ जोइहिं भणिउ ॥३२॥
सोहं सोहं सो जि हउं, पुणु-पुणु अप्पु मुणेइ । मोखह कारण जोइया, अण्णु ण सो चितेइ ॥३३॥
धम्म मुणिज्जइ एक परु, जो चेयण परिणामु । पुणु पुणु अप्पा भावियइ, सो सासय सुह-धामु ॥३४॥
माइ लूय विडंवियउ, णो इछहि णिव्वाणु । तो ण समीहइ शु तत्तु तुहं, जो तइ लोय पहाणु ॥३५॥
हत्थ-अहुट्ठ जु देवली, तहिं सिवसंति मुणेहिं । मूढा देउलि देउ णवि, भुल्ला कांइ भमेहि ॥३६॥
जो जाणइ ते जाणिवउ, अण्णु ण जाणउ कोइ । धंधइ पडियउ सयलु जगु, एम भणंतउ जोइ ॥३७॥
जो जाणइ सो जाणिवउ, यह संसारु असारु । सो झाइ ज्जइ एक्कउ परु, जो तइ लोयहं सारु ॥३८॥
अज्झवसाण निमित्तिण, [वि] जो वंधि ज्जइ कम्मु । सो मुंचि ज्जइ तो जि परु, जइ लब्भइ जिणु धम्मु ॥३९॥
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