Book Title: Anupeha
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ 24 जोई जोऐं जोइ, जो जोइज्जिइ सो जु तुहुँ । अण्णु ण विइयउ कोइ, भणइ जोइ जोइहिं भणिउ ॥३२॥ सोहं सोहं सो जि हउं, पुणु-पुणु अप्पु मुणेइ । मोखह कारण जोइया, अण्णु ण सो चितेइ ॥३३॥ धम्म मुणिज्जइ एक परु, जो चेयण परिणामु । पुणु पुणु अप्पा भावियइ, सो सासय सुह-धामु ॥३४॥ माइ लूय विडंवियउ, णो इछहि णिव्वाणु । तो ण समीहइ शु तत्तु तुहं, जो तइ लोय पहाणु ॥३५॥ हत्थ-अहुट्ठ जु देवली, तहिं सिवसंति मुणेहिं । मूढा देउलि देउ णवि, भुल्ला कांइ भमेहि ॥३६॥ जो जाणइ ते जाणिवउ, अण्णु ण जाणउ कोइ । धंधइ पडियउ सयलु जगु, एम भणंतउ जोइ ॥३७॥ जो जाणइ सो जाणिवउ, यह संसारु असारु । सो झाइ ज्जइ एक्कउ परु, जो तइ लोयहं सारु ॥३८॥ अज्झवसाण निमित्तिण, [वि] जो वंधि ज्जइ कम्मु । सो मुंचि ज्जइ तो जि परु, जइ लब्भइ जिणु धम्मु ॥३९॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36