Book Title: Anupeha
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 19
________________ 17 अनुवाद (१) जो सिद्ध और महर्षि पर-भाव से मुक्त हैं । परमानन्द में स्थित हैं । और चार प्रकार की सांसारिक गति से मुक्त हैं उनको मैं प्रणाम करता to hb (२) यदि तू चार प्रकार की गतियों मे आवन जावन से डरता हो तो जिनवर का कहना कर । तू बारह अनुप्रेक्षा को जान ले जिसके फलस्वरूप तू सत्वर मोक्ष-सुख पायेगा। अनित्य भावना (३)....... जीवन चंचल है और धन एवं यौवन बीजली के समान क्षणिक है । ऐसा जानकर तू अमूल्य मनुष्य जन्म गवाँ न दे । (४) हे ज्ञानी (बुद्ध) ! यदि जो नित्य है उसको जाना गया हो तो जो अनित्य है उसका तू त्याग कर । इसी कारण तू नित्य का स्वरूप ही समझ । ऐसा श्रुत केवली ने कहा है। अशरण भावना (५) हे ज्ञानी ! सकल वस्तु शरण रहित है ऐसा तू समझ ! अतः इसी कारण जीव का भी कोई शरण नहीं है । तो तू स्वयं आत्मा दर्शन, ज्ञान और चारित्र स्वरूप है ऐसा जान । . (६) दर्शन, ज्ञान और चारित्रमय आत्मा शरण है ऐसा तू जान । दूसरे किसी को तू शरण मत समझ । ऐसा जिनवर कहते हैं । संसार भावना (७) हे ज्ञानी, सारा तीन लोक भी शरण रूप नहीं है । तो 'मैं किसके शरण में जाउं' । ऐसा जानकर तीन लोक का स्वामी को तू हृदय में धारण कर ।

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