Book Title: Anupeha
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 23
________________ 21 (१६) संसार का कारण आश्रव है ऐसा तू जान । दूसरा कोई कारण नहीं है । हे जीव, तू ऐसा जान स्वयं आत्मा को देख । I संवर भावना (१७) जो आत्मा और पर अलग-अलग है ऐसा जानता है और यदि पर-भाव का त्याग करता है तब वह संवर है ऐसा तू जान । ऐसा जिनवर ने कहा है । (१८) हे जीव, यदि तू संवर करेगा तो शिव-सुख पावेगा । दूसरा सबका तू त्याग कर | जिनवर ऐसा कहते हैं । निर्जरा (१९) जो लोग सहजानन्द में अच्छी तरह स्थित है और जो पर - भाव का ग्रहण नहीं करता है वे सुख और असुख दोनों ही की निर्जरा करते हैं, जिनवर ऐसा कहते हैं । लोक स्वभाव (२०) अपना शरीर और तीन लोक भी अन्य है ऐसा तू समझ । जिनका आधार जो है उस आत्मा को तू देख क्योंकि (इसके बिना) दूसरा कोई नहीं हैं । बोधिदुर्लभ (२१) जो परमात्मा का लाभ है उसको तू दुर्लभ लाभ ही समझ । तेरे लिये और कुछ भी दुर्लभ नही है । ऐसा ज्ञानी साधु कहते हैं 1 धर्म भावना (२२) यदि तू शिव-सिद्धि चाहता हो तो मन, वचन और काया से विशुद्ध होकर, द्वेष और दोष दोनों को त्याग करके आत्मा का बार-बार ध्यान करना चाहिये । (२३) तू राग और द्वेष दोनों का त्याग करके स्वयं आत्मा को देख जिन स्वामी ऐसा कहते हैं कि वह सहज भाव से उत्पन्न होता है ।

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