Book Title: Anekant 1977 Book 30 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 10
________________ नारी-मुक्ति के क्रांतिकारी प्रवर्तक भगवान महावीर 0 डा० श्रीमती कुन्तल गोयल, एम. ए; पी-एच. डी. भगवान महावीर जैन धर्म के चोबीसवें तीर्थकर होने की स्वीकृति न देते हए अपने शिष्य प्रानन्द से कहा थे। वे यथार्थतः महावीर थे; महावीर प्रथत् अपने कि इस कार्य से संघ की प्रायु प्राधी रह जायेगी। किन्तु समस्त अवगुणों को, माया-मोह और प्रहं को जीतने वाले महावीर ने निःशंक होकर स्त्रियों को अपने संघ में महान वीर । उनके समय में उनके चलाये धर्म को सम्मिलित किया और साधुग्रो की भांति उनके लिये भी "निग्रंथ" कहा जाता था; "निग्रंथ" अर्थात् पूर्णरूप से प्रात्मोपलब्धि का पूर्ण सुअवसर दिया। उन्होने सधीय ग्रंथि-रहित, प्राग्रह-मासक्तियों एवं परिग्रहों से पृथक् एक मर्यादा को प्रखंड बनाये रखने के लिये बड़ी कुशलता से मानव धर्म। ऐसे सार्वजनीन धर्म की शरण में स्त्री-पुरुष, विधान तैयार किया, ताकि किसी भी तरह की अव्यवस्था गहस्थ-त्यागी, घनी-निर्धन, ऊच-नीच सभी पा सकते है तथा अनाचारिता को प्राश्रय न मिल सके। जहां समान रूपसे पुरुष का उद्धार हो सकता है और जैन धर्म मे ब्राह्मी, सुन्दरी, चंदना, मृगावती प्रादि स्त्रियों का भी। जो समभाव लिए हुये हो, वह अपना ही ऐसी कितनी ही नारियां हुई है जिन्होंने ससार का त्याग नही, समस्त विश्व का कल्याण कर सकता है। जो स्वय कर सिद्धि प्राप्त की तथा जन-कल्याण की दिशा में अपने को जीत सकता है, वही दूसरों को भी जीत सकता है। उन्नत विचारों का प्रचार किया। प्रार्या चदना बड़ी भगवान महावीर ऐसे ही महापुरुष थे जिन्होंने पुरुषों विदुषी महिला थी जिस पर भगवान महावीर की महती की तरह नारी समाज को संवारने और ऊंचा उठाने में कृपा थी। अनेक स्त्रियों ने उनसे दीक्षा लेकर निर्वाण पद स्तुत्य योगदान दिया और जिन्होने युग-युग की शोषित और की प्राप्ति की थी। यही भगवान महावीर की प्रथम शिष्या दलित नारी के भीतर प्रात्म-ज्योति प्रकाशित की। थी। श्रवणिकामों में उनका स्थान बहुत ऊचा था। इनके भगवान महावीर से पूर्व समाज में नारी की स्थिति नेतत्व में छत्तीस हजार भिक्षुणिया थीं। इसी तरह प्रत्यन्त दयनीय पी। वह उपेक्षित और नीच समझी सन्दरी तथा ब्राह्मी के नेतृत्व में तीन लाख, बुद्धमती जाती थी। उसकी तुलना कीतवास से की जाती थी। के नेतत्व मे पचपन हजार तथा यक्षिणी के नेतृत्व में वह पुरुषों की कामना सिद्धि तथा वासना तृप्ति का साधन चालीस हजार भिक्षणियां थी। जैन संघ मे स्त्रियों की थी। उसकी अपनी कोई कामना नहीं थी और न ही सरक्षा हेतु पूर्ण व्यबस्था थी। यदि कोई भिक्षुणी के उसका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व था। भगवान महावीर चारित्रिक पतन हेत् प्रयत्नशील होता तो उसका वध कर ने इस दारुण स्थिति से उसका उद्धार कर समाज मे उसे डालने तक का आदेश था। स्त्री तथा पुरुष मे कहीं भी सम्माननीय स्थान दिया। उनकी दृष्टि में जितने महत्त्व. भेदभाव नहीं रखा जाता था और न ही स्त्रियों की पूर्ण पुरुष थे, उतनी ही स्त्रियां भी । इसलिये उन्होंने अपना उपेक्षा की जाती थी। चतुर्विध मे प्रायिकामों एवं श्राविकाओं को सम्मिलित कर भगवान महावीर नारी के प्रति इतने उदार एवं समाज में स्त्रियों को पुरुषो के समकक्ष उच्च स्थान दिया स्नेहशील थे कि कभी उसे अपमानित होते नही देख सकते बौद्ध धर्म की भांति जैन धर्म में स्त्रियां निर्वाण-सिद्धि में थे। उनका कथन था यदि कि कोई स्त्री किसी कारण वश बाधक नही थी। बुद्ध ने अपने संघ मे स्त्रियों को प्रबजित अपनी चारित्रिक गरिमा से गिर जाती है तो उसके लिये

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