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अनेकान्त
[वर्षे १३
अधिकांश कार्य थोडेसे खबमें चल सकता है और उससे में और भी अधिक प्रयत्नशील होनेकी चेष्टा करेंगे। समाज बहुत सी दिक्कतोंसे भी बच सकता है। चतुर्मासमें सुस्तकमीने मौजमाबादके शास्त्रभण्डारकी जो सूर्य स्यागीगण एक ही स्थान पर चार महीना व्यतीत करते भेजी है इसके लिए हम उनके आभारी हैं। उस सूची मेरे हैं। यदि वे प्रारमकल्याणके साथ जनसंस्कृति और उसके जिन अप्रकाशित महत्वपूर्ण अन्य ग्रन्थभण्डारों में अनु साहित्यकी ओर अपनी रुचि व्यक्त करें तो उससे सेकड़ों पलब्ध ग्रन्थोंके नाम जान पड़े उनका संक्षिप्त विवरण प्राचीन ग्रन्थोंका पता चल सकता है और दीमक कीटका- निम्न प्रकार है:दिसे उनका संरक्षण भी हो सकता है। प्राशा है मुनि, १. नागकुमार चरित-यह अन्य संस्कृत भाषाका क्षुबलक ब्रह्मचारी और त्यागीगण साहित्यसेवाके इस पुनीत है और इसके कर्ता ब्रह्म नेमिदत्त हैं जो विक्रमकी १६वीं कार्यमें अपना सक्रिय सहयोग प्रदान करेंगे।
शताब्दीके विद्वान थे। खेद है आज समाजमें जिनवाणीके प्रति भारी उपेक्षा २.बुद्धिरसायन-इस ग्रन्थमें 108 दोहे हैं। पुरानी चल रही है उसकी ओर न धनिकोंका ध्यान है. न स्यागि- हिन्दी में लिखे गये हैं। इसके कर्ता कवि जिनवर हैं दोहा योंका और न विद्वानोंका है। ऐसी स्थिति में जिनवाणीका आचरण-सम्बन्धि सुन्दर शिक्षाओंसे अलंकृत हैं। उसके संरक्षण कैसे हो सकता है। आज हम जिनवाणीकी मह- श्रादि अन्तके दोहे नीचे दिये जाते हैं:पाका मूल्यांकन नहीं कर रहे हैं और न उसकी सुरक्षाका पढम (पढमि) ओंकार बुह, भासइ जिणवरुदेउ । ही प्रयत्न कर रहे हैं, यह बड़े भारी खेदका विषय है। भासड.."वेद पुराण सिरु, सिव सुहकारण हे उ ॥१॥ समाजमें जिनवाणी माताकी भक्ति केवल हाथ जोड़ने
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+ अथवा नमस्कार करने तक सीमित है, जब कि जिनवाणी पढत सुणंतहं जे वि णर, लिहवि लिहाइवि देह । और जिनदेवमें कुछ भी अन्तर नहीं है-'नहि किंचिद- ते सुह भुजहिं विविह परि, जिणवरु एम भोइ ॥३७६|| स्तरं प्राहुराप्ता हिश्र तदेवयोः'--जो जैनधर्मके गौरबके यह गुच्छक सं० १५५६ का लिखा हुआ है जो त्रिभुः साथ हमारे उत्थान-पतनकी यथार्थ मार्गोपदेशिका है। वनकीर्ति नामके मुनिराजको समर्पण किया गया है। इससे
समाज मन्दिरोंमें चांदी सोनेके उपकरण टाइन और संग- स्पष्ट है कि यह ग्रन्थ उक्त संवत् से पूर्व बनाया गया है, मर्मरके फर्श बगवाने, नूतन मन्दिर बनवाने, मूर्ति-निर्माण, कब बनाया गया? यह विचारणीय है। करने, वेदी प्रतिष्ठा और रथमहोत्सवादि कार्योक सम्पादनमें
३.-इस गुच्छकमें है ग्रन्थ हैं- कोकिलालगे हुए हैं। जब कि दूसरी समाजें अपने शास्त्रोंकी पंचमीकथा २ मुकुट सप्तमीकथा, ३ दुधारसिकथा ४ सम्हाल में लाखों रुपया लगा रही हैं। एक बाल्मीकि रामा- आदित्यवारकथा,५ तीनचउवीसीकथा,६ पुष्पांजलियण पाठ संशोधन के लिए साढ़े आठ लाख रुपये लगानेका कथा निर्दखसप्तमीकथा, निर्भरपंचमीकथा मनुसमाचार भी नवभारत में प्रकाशित हो चुका है। इतना सब प्रेक्षा । इन सब ग्रन्थोंके कर्ता ब्रह्म साधारण हैं जो भट्टारक होते हुए भी दिगम्बर समाजके नेतागणोंका ध्यान इस तरफ नरेन्द्रकीर्तिके शिष्य थे। यह गुच्छक संवत् १५०८ का नहीं जा रहा है वे अब भी अर्थसंचय और अपारतृष्णाकी लिखा हमा है, जिसकी पत्र संख्या २० है। जिससे मालूम पूर्तिमें लगे हुए हैं। उनका जैनसाहित्यका इतिहास, होता है कि ये सब कथादि ग्रन्थ उक संवत् से पूर्वके रचे बैन शब्दकोष, जैन ग्रन्थसूची मादि महत्वके कार्योंको हये है। सम्पन्न करानेकी ओर ध्यान भी नहीं है। ऐसी स्थिति में ४. यदुचरिउ-(मुनिकामर) यह ग्रन्थ अपभ्रंश जिनवाणीके संरक्षण उदार और प्रसारका भारी कार्य, जो भाषामें रचा गया है। यह मुनि कनकामरकी दूसरी कृति बहु अर्थ व्यवको लिए हुए है कैसे सम्पन्न हो सकता है? जान पड़ती है परन्तु वह अपूर्ण है, इसके ४६ से ७० तक माशा है समाजके नेतागण, और विद्वान तथा त्यागीगण कुल २४ पत्र ही उपलब्ध हैं। शेष आदिके पत्र प्रयत्न अब भी इस दिशामें जागरुक होकर प्रयत्न करेंगे, तो यह करने पर शायद उक्त भंडारमें उपलब्ध हो जाय, ऐसी कार्य किसी तरह सम्पन्न हो सकते हैं। चुल्लकसिद्धिसागरजीसे सम्भावना है। हमारा सानुरोध निवेदन है कि वे जनसाहित्यके समुद्धार- ५.अजितपुराण-इस ग्रन्थमें जैनियोंके दूसरे तीर्थ
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